रायपुर। वर्ल्ड फैमिली डे के मौके पर अगर छत्तीसगढ़ की राजनीति की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां परिवार ही पहचान बन चुके हैं। सियासत में नाम और रसूख सिर्फ व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार से जुड़ा होता है। कई दशकों से राज्य की राजनीति में कुछ बड़े घराने सक्रिय हैं, जिनका प्रभाव विधानसभा से लेकर पंचायत स्तर तक देखा जा सकता है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख राजनीतिक परिवारों के बारे में जो आज भी छत्तीसगढ़ की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
1. जोगी परिवार – जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (J) का चेहरा
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी का नाम राज्य की राजनीति में एक अहम अध्याय की तरह है। उनके निधन के बाद उनके बेटे अमित जोगी ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़कर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (J) की स्थापना की थी। हालांकि पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुत सफलता नहीं मिली, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर यह आज भी एक पहचान रखती है। अमित जोगी सक्रिय राजनीति में बने हुए हैं और जोगी समर्थक वर्ग में अब भी पकड़ बनाए हुए हैं।
2. साहू परिवार – महासमुंद से दिल्ली तक का सफर
भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में खाद्य मंत्री रहे अमरजीत भगत, और उनके समकालीन राजनेता भी अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन महासमुंद से सांसद चुने गए चुन्नीलाल साहू और उनके परिवार की राजनीति में लगातार सक्रियता बनी हुई है। साहू समाज के भीतर इनका अच्छा प्रभाव है और संगठनात्मक राजनीति में भी इनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है।
3. बघेल परिवार – मुख्यमंत्री निवास से गांव तक
भूपेश बघेल ने न सिर्फ मुख्यमंत्री पद को संभाला बल्कि पूरे प्रदेश में एक राजनीतिक पहचान भी बनाई। उनका परिवार लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहा है। बघेल की पत्नी और बच्चे हालांकि प्रत्यक्ष राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन क्षेत्रीय कार्यक्रमों और सामाजिक कार्यों में इनकी भागीदारी देखी जाती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद भी पारिवारिक मूल्यों का सार्वजनिक तौर पर उल्लेख करते रहते हैं, जिससे जनता के बीच उनकी पारिवारिक छवि और मजबूत होती है।
4. साहू-देवांगन परिवार – संगठन और सत्ता दोनों में पकड़
कांग्रेस के दिग्गज नेता मोहन मरकाम और उनके समकालीन नेताओं के परिवार भी पार्टी संगठन में अहम भूमिकाएं निभा रहे हैं। वहीं सत्ता पक्ष के मंत्री रविंद्र चौबे और शिव डहरिया जैसे नेता भी अपने-अपने परिवारों के साथ राजनीति में सक्रिय हैं। उनके परिजन पंचायत और नगरीय निकाय स्तर पर काम कर रहे हैं। ये राजनीतिक घराने न सिर्फ चुनावी रणनीति में अहम भूमिका निभाते हैं बल्कि आगामी पीढ़ी को भी राजनीति में ला रहे हैं।
5. बीजेपी के राजनीतिक घराने – पुराना अनुभव, नई ऊर्जा
भाजपा की राजनीति में भी परिवारवाद दिखता है। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का परिवार इस बात का उदाहरण है। रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह एक समय सांसद रह चुके हैं और अब भी भाजपा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वहीं बृजमोहन अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेताओं के परिवार के सदस्य भी सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों के जरिए राजनीति के नजदीक हैं। पार्टी में युवाओं को जगह देने की बात करते हुए ये परिवार भी अपनी अगली पीढ़ी को राजनीतिक अनुभव दिला रहे हैं।
6. शहरी राजनीति में उभरते परिवार
रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और भिलाई जैसे शहरी इलाकों में कई नए राजनीतिक परिवार उभर रहे हैं। पार्षद से लेकर महापौर तक, एक ही परिवार के दो या तीन सदस्य राजनीति में सक्रिय देखे जा सकते हैं। महिलाओं की भागीदारी भी इनमें बढ़ी है, जिससे राजनीति का पारिवारिक विस्तार हुआ है।