"पाँच साल, 4000 कार्रवाई: अवैध कब्जों की जंग और जिद्दी इलाकों की कहानी"


 

शहर की सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जों की समस्या सालों से एक चुनौती बनी हुई है। नगर निगम की तमाम कोशिशों के बावजूद, यह समस्या केवल बनी हुई है बल्कि कई इलाकों में और जटिल हो गई है। पिछले पाँच वर्षों में निगम द्वारा कुल 4000 से अधिक अवैध कब्जा हटाने की कार्रवाई की गई है, लेकिन हालात जस के तस हैं।

कार्रवाई के बाद भी फिर लौट आते हैं कब्जे

निगम की ओर से की गई कार्रवाइयों का असर कुछ घंटों या दिनों तक रहता है, लेकिन जैसे ही तोड़फोड़ दस्ते की गाड़ियां इलाके से निकलती हैं, वैसे ही दुकानदार और अस्थायी व्यवसायी वापस आकर अपना कब्जा जमा लेते हैं। ये एक तरह की "लुका-छिपी" की लड़ाई बन चुकी है जिसमें अंततः जनता को ही परेशानी झेलनी पड़ती है।

कुख्यात इलाके: रोजमर्रा की जाम और अव्यवस्था

शहर में कुछ इलाके तो अवैध कब्जों के लिए बदनाम हो चुके हैं। इनमें से प्रमुख हैं:

  • नई सड़क: फुटपाथ पर खोमचे, ठेले, कपड़े और जूते-चप्पल की अस्थायी दुकानें पूरी सड़क घेर लेती हैं। पैदल चलना तक मुश्किल हो जाता है।

  • बिट्ठन मार्केट: यहां पर अतिक्रमण इस कदर हो गया है कि दोपहिया वाहन भी मुश्किल से निकल पाते हैं।

  • बरखेड़ी और जहांगीराबाद: यहां पर स्थायी दुकानों के आगे भी दुकानदार टीन शेड लगाकर कब्जा कर लेते हैं और खुलेआम व्यापार करते हैं।

  • हमीदिया रोड: यह इलाका शहर का ट्रैफिक हॉटस्पॉट बन चुका है। वजह वही — सड़क पर पसरे अस्थायी दुकानें और ठेले।

निगम का पक्ष: "हम रोज कार्रवाई करते हैं, लेकिन..."

नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हमारे पास सीमित संसाधन हैं। रोज 2-3 टीमों के जरिए शहरभर में कार्रवाई होती है, लेकिन कब्जाधारक बेहद संगठित हैं। वे हर बार नया तरीका निकाल लेते हैं। कभी सामाजिक दबाव, कभी स्थानीय नेताओं की सिफारिशें हमारे काम में बाधा बनती हैं।"

स्थायी समाधान क्यों नहीं?

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जाएगी, तब तक ये समस्या बनी रहेगी। शहर नियोजन विशेषज्ञ अजय दुबे कहते हैं, “इन व्यवसायियों के लिए वैकल्पिक बाजार या अस्थायी स्टॉल जोन बनाना जरूरी है। केवल जब्ती और तोड़फोड़ से समस्या का समाधान नहीं होगा।”

दुकानदारों की मजबूरी

दूसरी ओर, कब्जा करने वाले अधिकांश दुकानदार इसे अपनी मजबूरी बताते हैं। बिट्ठन मार्केट में जूते बेचने वाले रामस्वरूप कहते हैं, “हमारे पास कोई दुकान नहीं है। यही रोज़ी-रोटी का सहारा है। हटाए जाने के बाद कोई विकल्प नहीं दिया जाता, हम जाएं तो जाएं कहां?”

आम जनता की पीड़ा

इन अवैध कब्जों का सबसे ज्यादा असर आम नागरिकों पर होता है। ट्रैफिक जाम, धूल-धक्कड़, झगड़े और सुरक्षा की समस्या रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है।

स्थानीय निवासी सुरभि शर्मा कहती हैं, “बच्चों के स्कूल जाने से लेकर ऑफिस पहुंचने तक हर मोड़ पर जाम मिलता है। निगम को सख्ती के साथ स्थायी हल निकालना चाहिए।”

राजनीतिक हस्तक्षेप भी बड़ी वजह

अवैध कब्जों को हटाने में स्थानीय राजनीति का भी बड़ा हाथ माना जाता है। कई बार नेताओं के हस्तक्षेप से कार्रवाई रुक जाती है या अधूरी रह जाती है। यही वजह है कि कुछ इलाके ‘अछूते ज़ोन’ बन गए हैं, जहां निगम भी हाथ डालने से कतराता है।

समाधान की राह

शहर को अवैध कब्जों से निजात दिलाने के लिए केवल जब्ती या तोड़फोड़ नहीं, बल्कि समग्र रणनीति की जरूरत है। वैकल्पिक व्यापार स्थल, सख्त निगरानी व्यवस्था, डिजिटल रिकॉर्डिंग, और राजनैतिक इच्छाशक्ति — ये चारों मिलकर ही इस पुरानी समस्या का हल निकाल सकते हैं।


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