दुर्ग, छत्तीसगढ़ | 13 मई 2025
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से एक अनूठा मामला सामने आया है, जहां आपसी विवाद में तलाक की कगार पर पहुंचे पति-पत्नी ने हाईकोर्ट की पहल पर समझदारी और सहमति का रास्ता अपनाते हुए एक नया सामाजिक उदाहरण पेश किया है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को रद्द करते हुए दोनों को एक ही घर में अलग-अलग मंजिलों पर रहने की अनुमति दी है।
पारिवारिक विवाद से कोर्ट तक का सफर
दुर्ग निवासी दंपति के बीच आपसी रिश्तों में खटास आने के बाद मामला फैमिली कोर्ट तक जा पहुंचा। फैमिली कोर्ट ने 9 मई 2024 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की डिक्री जारी कर दी थी। इस आदेश के खिलाफ पत्नी ने बिलासपुर हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट की मध्यस्थता से बना सुलह का रास्ता
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने दंपति को आपसी समझौते का विकल्प सुझाया। इस पहल के बाद दोनों पक्षों ने 28 अप्रैल 2025 को गवाहों की उपस्थिति में छह बिंदुओं पर सहमति बनाकर लिखित एग्रीमेंट तैयार किया, जिसे 1 मई 2025 को कोर्ट में प्रस्तुत किया गया।
कोर्ट ने रद्द किया तलाक का आदेश
हाईकोर्ट ने दंपति के आपसी समझौते को ध्यान में रखते हुए फैमिली कोर्ट की तलाक डिक्री को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस सहमति का उद्देश्य विवाह को बनाए रखना और दोनों पक्षों को स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवन जीने का अवसर देना है।
समझौते की मुख्य शर्तें
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एक ही मकान में अलग-अलग मंजिलों पर रहना
पति ग्राउंड फ्लोर पर और पत्नी फर्स्ट फ्लोर पर रहेंगी। दोनों अपनी-अपनी मंजिलों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार होंगे। -
साझा खर्चों का बराबर वहन
जल कर, बिजली बिल, संपत्ति कर जैसे खर्चों का भुगतान दोनों बराबरी से करेंगे और उसका रिकॉर्ड रखा जाएगा। -
आर्थिक स्वतंत्रता
दोनों के व्यक्तिगत बैंक खाते, वेतन, पेंशन और आय में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। वित्तीय निर्णयों के लिए लिखित सहमति आवश्यक होगी। -
स्वतंत्र सामाजिक जीवन की अनुमति
दोनों को अलग-अलग यात्रा करने, अपने सामाजिक संबंध बनाए रखने और अन्य स्थानों पर रहने की स्वतंत्रता होगी। कोई भी पक्ष दूसरे की सामाजिक गतिविधियों में बाधा नहीं देगा। -
संशोधन की स्वतंत्रता
दोनों अपने-अपने फ्लोर पर मरम्मत या बदलाव कर सकते हैं, बशर्ते उससे दूसरे की सुविधा पर असर न हो। इसके लिए 30 दिन पहले सूचना देना अनिवार्य है। -
चिकित्सा सुविधा में सहयोग
पति, पत्नी को केंद्रीय हॉस्पिटल की चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने में औपचारिकताओं में मदद करेगा, जबकि अन्य खर्च पत्नी वहन करेंगी।
सामाजिक दृष्टिकोण से एक नई राह
यह मामला भारतीय समाज में पारिवारिक विवादों और तलाक को लेकर चली आ रही परंपराओं से अलग सोच को दर्शाता है। जहां आमतौर पर तलाक के बाद पति-पत्नी के रिश्ते खत्म हो जाते हैं, वहीं इस मामले में दोनों ने न सिर्फ एक साथ रहने का फैसला किया, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा का भी सम्मान किया है।
कोर्ट की चेतावनी
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्ष इस समझौते का उल्लंघन करता है, तो दूसरा पक्ष पुनः न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।