बिलासपुर में सालों से बंद पड़ी सिटी बस सेवा को जुलाई में फिर से शुरू किया गया था, लेकिन मात्र 20 दिन बाद ही यह सेवा एक बार फिर ठप हो गई। इस पर हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाते हुए परिवहन सचिव को तलब किया है। बुधवार को इस मुद्दे पर आई खबर को आधार बनाते हुए, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने नाराजगी जताई और कहा कि जनता को गुमराह करने वाली जानकारी स्वीकार्य नहीं है।
हाई कोर्ट ने परिवहन सचिव एस. प्रकाश को गुरुवार को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि 22 जुलाई को दिए गए शपथ पत्र में दावा किया गया था कि 6 में से 5 सिटी बसें चल रही हैं और एक जल्द ही शुरू होगी, जबकि अब यह सामने आया कि बसें उपयोग योग्य ही नहीं थीं और पिछले चार दिनों से किसी भी रूट पर नहीं चल रही हैं। अदालत ने पूछा कि भ्रामक जानकारी देने पर क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए।
जनता पर बढ़ा आर्थिक बोझ
बस सेवा बंद होने से आम लोगों को मजबूरी में निजी बसों या ऑटो से सफर करना पड़ रहा है, जिससे उनका किराया बढ़ गया है। जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा बसें पुरानी और खराब हो चुकी हैं, जिनकी मरम्मत संभव नहीं है। परिवहन विभाग का कहना है कि दिवाली के बाद नई ई-बस सेवा शुरू करने की योजना है, लेकिन तब तक यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ेगी।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस तरह के हलफनामे से जनता को गंभीर असुविधा हुई है। अदालत ने यह भी कहा कि जब बसें चालू स्थिति में नहीं थीं, तब यह दावा करना कि वे सड़कों पर दौड़ रही हैं, जनता और न्यायालय दोनों को गुमराह करना है। मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी, जिसमें परिवहन सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना होगा।
एसटी महिला अभ्यर्थी का नाम सूची से हटाने पर नोटिस
इसी सुनवाई में एक अन्य मामले में, अनुसूचित जनजाति महिला अभ्यर्थी का नाम अंतिम समय पर दस्तावेज सत्यापन सूची से हटाने के मुद्दे पर हाई कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। यह मामला सब इंजीनियर (सिविल) भर्ती से जुड़ा है।
रश्मि वाकरे नाम की अभ्यर्थी ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से याचिका दायर की है। उनका कहना है कि मार्च 2025 में पीएचई विभाग ने 118 पदों के लिए भर्ती विज्ञापन जारी किया था। पहली काउंसलिंग सूची में उनका नाम एसटी (महिला) वर्ग में शामिल था और 10 जुलाई को दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलाया गया था। लेकिन 16 जुलाई को जारी संशोधित सूची में उनका नाम हटा दिया गया और उन्हें सत्यापन से वंचित कर दिया गया।
आरक्षण नियमों के उल्लंघन का आरोप
याचिका में आरोप है कि पीएचई के अधिकारियों ने आरक्षण रोस्टर, सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया। मार्च 2025 के विज्ञापन में 102 पदों में 52 अनारक्षित, 15 एससी, 20 एसटी और 15% ओबीसी के लिए आरक्षित रखे गए, जबकि 3 मई 2023 के परिपत्र और 29 नवंबर 2012 के संशोधन में एसटी वर्ग के लिए 32% आरक्षण का स्पष्ट प्रावधान है।
अभ्यर्थी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आरक्षण रोस्टर और अदालत के निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया था, लेकिन पीएचई अफसरों ने मनमाने तरीके से नियम लागू किए, जिससे वह एक सुनहरे अवसर से वंचित हो गईं।
हाई कोर्ट की कार्रवाई
हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार, सामान्य प्रशासन विभाग और पीएचई सचिव से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है और नियुक्ति प्रक्रिया को अपने अधीन रखा है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि आरक्षण संबंधी नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।