बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट संशोधन के मुद्दे पर अब छत्तीसगढ़ की राजनीति भी गरमा गई है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उप मुख्यमंत्री अरुण साव आमने-सामने आ गए हैं। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए, जिससे राजनीतिक माहौल और गर्म हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि न केवल बिहार, बल्कि छत्तीसगढ़ में भी बड़े पैमाने पर वोट चोरी हुई है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने चोरी के वोटों के सहारे ही प्रदेश में सरकार बनाई है। बघेल ने कहा कि इस पूरे मामले के लिए निर्वाचन आयोग पूरी तरह जिम्मेदार है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राहुल गांधी ने ठोस सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश को इस मुद्दे पर आगाह किया था, जिसके बाद पूरे देश में चर्चा शुरू हो गई थी।
बघेल के मुताबिक, भाजपा और उसके सहयोगियों ने योजनाबद्ध तरीके से वोटर लिस्ट में हेरफेर कर कई मतदाताओं के नाम काटे और कुछ स्थानों पर फर्जी नाम जोड़े गए। उनका कहना है कि इस तरह की गतिविधियों से लोकतंत्र को गहरी चोट पहुंच रही है और मतदाताओं के अधिकारों का हनन हो रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री के इन गंभीर आरोपों पर उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं की सोच और बयानबाजी पर तरस आता है। सत्ता में रहते समय वे इन प्रक्रियाओं पर सवाल नहीं उठाते, लेकिन जैसे ही विपक्ष में आते हैं, तो हर चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करने लगते हैं। साव ने तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस ने EVM पर सवाल उठाना शुरू किया, और अब वोटर लिस्ट पर अटक गए हैं।
साव ने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट तैयार करने की एक वैधानिक और पारदर्शी प्रक्रिया होती है, जिसमें दावा-आपत्ति और जांच की पूरी प्रक्रिया के बाद अंतिम सूची जारी की जाती है। उन्होंने पूछा कि जब चुनाव पूरे हो चुके हैं और परिणाम आ चुके हैं, तो अब वोटर लिस्ट पर सवाल खड़े करने का क्या औचित्य है?
डिप्टी सीएम ने आगे कहा कि कांग्रेस बैलेट पेपर के जमाने में भी चुनाव हार चुकी है। ऐसे में यह कहना कि तकनीक या प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण हार हुई, जनता को गुमराह करने का प्रयास है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस लगातार देश में भ्रम का माहौल बनाने और जनता के बीच अविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब जनता इन बातों में नहीं आने वाली।
इस सियासी बयानबाजी से साफ है कि वोटर लिस्ट संशोधन का मुद्दा केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर छत्तीसगढ़ में भी महसूस किया जा रहा है। दोनों दल इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से पेश कर रहे हैं — कांग्रेस इसे लोकतंत्र पर हमला बता रही है, तो भाजपा इसे हार के बाद का बहाना मान रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे मुद्दे आमतौर पर आने वाले चुनावों में माहौल बनाने के लिए उठाए जाते हैं। यह बयानबाजी न केवल कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करती है, बल्कि मतदाताओं के बीच अपनी बात रखने का भी माध्यम बनती है। हालांकि, अंतिम फैसला हमेशा जनता के हाथ में होता है, और वह अपने अनुभव और आकलन के आधार पर ही तय करती है कि किस पर विश्वास करना है।
वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप नए नहीं हैं, लेकिन हर बार यह मुद्दा चुनावी हार या जीत के बाद ही तेज होता है। इस बार भी, छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह मामला विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच तकरार का नया कारण बन गया है। आने वाले दिनों में इस पर और बयानबाजी और राजनीतिक आरोप देखने को मिल सकते हैं, जिससे प्रदेश का सियासी पारा और बढ़ने की संभावना है।