**बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर एम्बुलेंस की देरी बनी मौत का कारण, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार; 3 लाख मुआवजे का आदेश**
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर एक दिल दहला देने वाली घटना ने व्यवस्था की पोल खोल दी। ट्रेन में सफर कर रही 62 वर्षीय कैंसर पीड़ित महिला की तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिजनों ने तत्काल एम्बुलेंस बुलाई, लेकिन समय पर मदद नहीं मिली और इलाज के अभाव में महिला ने दम तोड़ दिया। इस घटना पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और रेलवे को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। इसमें 2 लाख रुपये राज्य सरकार और 1 लाख रुपये रेलवे को देना होगा।
**हाईकोर्ट की नाराजगी: "यह लापरवाही अस्वीकार्य"**
मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच में हुई। कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार की अव्यवस्था पर कड़ी नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस ने कहा कि मरीजों को समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार और रेलवे की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने दोनों पक्षों से शपथपत्र मांगा था, लेकिन रेलवे का जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया।
**रेलवे का दावा: "प्लेटफॉर्म पर कोई नहीं मिला"**
रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने दावा किया कि स्टाफ भेजा गया था, लेकिन प्लेटफॉर्म पर कोई नहीं मिला। वहीं, राज्य सरकार ने अपनी एम्बुलेंस सेवाओं और योजनाओं की जानकारी दी। हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को अपर्याप्त मानते हुए मृतका के परिजनों को मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने भविष्य में ऐसी लापरवाही रोकने के लिए मरीजों को त्वरित स्वास्थ्य सुविधाएं और एम्बुलेंस उपलब्ध कराने के सख्त निर्देश भी दिए।
**क्या थी पूरी घटना?**
18 मार्च को मध्यप्रदेश के बुढ़ार निवासी कैंसर पीड़ित महिला अपने परिजनों के साथ ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के जनरल कोच में रायपुर से बिलासपुर आ रही थी। उसे बिलासपुर में ट्रेन बदलकर बुढ़ार जाना था। सफर के दौरान उसकी तबीयत बिगड़ गई। बिलासपुर स्टेशन पहुंचने पर परिजनों ने रेल कर्मचारियों को सूचना दी। रेलवे ने स्ट्रेचर भेजा, जिस पर कुलियों ने महिला को गेट तक पहुंचाया और छोड़ दिया। एक घंटे बाद एम्बुलेंस पहुंची, लेकिन तब तक महिला की मौत हो चुकी थी। एम्बुलेंस ने शव ले जाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद परिजनों को निजी वाहन से शव ले जाना पड़ा।
**दंतेवाड़ा में भी लापरवाही, मामला कोर्ट में**
इसी तरह, दंतेवाड़ा जिले के गीदम में 11 घंटे तक एम्बुलेंस नहीं मिलने से एक मरीज की मौत हो गई। परिजनों ने बताया कि उन्होंने बार-बार 108 नंबर पर कॉल किया, लेकिन एम्बुलेंस सुबह की बजाय रात में पहुंची। समय पर इलाज न मिलने से मरीज की जान चली गई। गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में हंगामा मचाया। इस मामले की सुनवाई भी हाईकोर्ट में चल रही है, और कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
**जनहित याचिका के रूप में सुनवाई**
हाईकोर्ट ने बिलासपुर और दंतेवाड़ा की इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए दोनों मामलों को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने कहा कि ऐसी लापरवाही न केवल अमानवीय है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन है। कोर्ट ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और समय पर एम्बुलेंस उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने की चेतावनी दी है।
**निष्कर्ष: सिस्टम की खामियां उजागर**
इन घटनाओं ने एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं और रेलवे की आपातकालीन व्यवस्थाओं में खामियों को उजागर किया है। हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए राहत है, बल्कि भविष्य में ऐसी लापरवाही रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।