3 पीढ़ियों को पढ़ाने वाली टीचर को अनोखी विदाई!अंग्रेजों के जमाने से सेवा, ढोल-डीजे के साथ निकली सम्मान यात्रा
बिलासपुर/रतनपुर।छत्तीसगढ़ के रतनपुर में बुधवार का दिन बेहद खास था—यहाँ कोई शोभायात्रा नहीं, न कोई पर्व उत्सव, लेकिन सड़कों पर रंग गुलाल उड़ रहा था, मांदर की थाप पर लोग थिरक रहे थे और डीजे की धुनों पर झूमते चेहरे किसी बड़े जश्न का एहसास दिला रहे थे। वजह थी एक खास शख्सियत की विदाई—प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका मीरा शर्मा और हेडमास्टर शारदा राजपूत को सम्मान के साथ सेवानिवृत्त किया गया।
अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुआ सफर
मीरा शर्मा की पहली पोस्टिंग अंग्रेजों के शासनकाल में करैहापारा स्थित बालक प्राथमिक शाला में हुई थी। इस स्कूल से उनका इतना गहरा नाता रहा कि उन्होंने यहीं तीन पीढ़ियों को शिक्षित किया—बच्चे, उनके माता-पिता और अब उनके दादा-दादी भी उनके विद्यार्थी रहे।
तीन पीढ़ियों की गुरु बनीं मीरा मैडम
मीरा शर्मा ने बताया कि बीच में एक-दो वर्षों का ट्रांसफर ज़रूर हुआ, लेकिन फिर से करैहापारा स्कूल में वापसी हुई और तब से यहीं से सेवा दी। उनके सेवानिवृत्त होने पर वो सभी विद्यार्थी जो कभी उनकी क्लास में बैठते थे, अब सम्मान में रैली का हिस्सा बने।
गांव ने शिक्षक को बनाया अपना नायक
शारदा राजपूत, जो बोधीबंद भोंदलापारा स्कूल में हेडमास्टर रहीं, उन्होंने भी इस विदाई को भावुक बताया। उनकी पहली पोस्टिंग 21 वर्ष की उम्र में ग्राम जलसो में हुई थी। बाद में रतनपुर और फिर बोधीबंद में 17 वर्षों तक सेवाएं दीं।
ढोल, मंजीरा, डीजे और गुलाल—सम्मान की नई परिभाषा
शिक्षकों की विदाई पर निकली इस सम्मान यात्रा ने पूरे गांव को एक कर दिया। मांदर की थाप, भजन मंडली, डीजे की बीट और उड़ते रंग गुलाल के बीच, लोग मीरा शर्मा और शारदा राजपूत के घर तक उन्हें सम्मानपूर्वक पहुंचाने के लिए उमड़ पड़े।
सभी हुए शामिल, रच गया इतिहास
इस अवसर पर वार्ड पार्षद हर्ष पटेल, शिक्षक अशोक शर्मा, अनिल शर्मा, सुधांशु तिवारी सहित बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण शामिल हुए। यह सिर्फ एक विदाई नहीं, बल्कि एक युग के समर्पित शिक्षकों को समाज की तरफ से श्रद्धांजलि थी।