"पत्नी का देवर के साथ अफेयर, भरण-पोषण का अधिकार खोया: हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द किया"


 

रायपुर, 20 मई 2025 – छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले पर महिला अधिकार संगठनों और कानून विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं, जिसमें व्यभिचार (एडल्ट्री) में लिप्त पाई गई पत्नी को भरण-पोषण से वंचित कर दिया गया था। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि तलाक का आधार ही व्यभिचार है, तो पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।

महिला संगठनों की प्रतिक्रिया

राज्य की प्रमुख महिला संगठन "महिला अधिकार मंच" ने इस फैसले पर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में केवल एक पक्ष (पत्नी) को दंडित करना उचित नहीं है। संगठन की अध्यक्षा श्रीमती अंजली वर्मा ने कहा, "यदि पति भी किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध रखता है, तो क्या उस पर भी ऐसी ही कार्रवाई होगी? कानून को लिंग-निष्पक्ष होना चाहिए।"

कुछ विधि विशेषज्ञों का भी मानना है कि भरण-पोषण का उद्देश्य महिला की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है, और इसे केवल नैतिक आधार पर रद्द करना उचित नहीं हो सकता।

पुरुष अधिकार संगठनों ने सराहना की

वहीं, पुरुष अधिकार संगठन "सेव फैमिली फाउंडेशन" ने इस फैसले का स्वागत किया है। संगठन के प्रवक्ता राजीव मिश्रा ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो गलत आरोपों और दुर्व्यवहार का शिकार हो रहे पुरुषों को न्याय दिलाता है। अगर कोई महिला विवाहेतर संबंध बनाकर पति के साथ धोखा करती है, तो उसे भरण-पोषण का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।"

क्या कहता है कानून?

भारतीय कानून के तहत, हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 125 के अनुसार, पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है, लेकिन अगर वह "व्यभिचार" में लिप्त पाई जाती है या बिना किसी वाजिब कारण के पति का साथ छोड़ देती है, तो उसका यह अधिकार समाप्त हो सकता है। हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि तलाक का आधार ही व्यभिचार था, इसलिए पत्नी को भरण-पोषण नहीं मिल सकता।

आगे की कार्रवाई

सूत्रों के अनुसार, पत्नी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की तैयारी की जा रही है। उनकी वकील ने कहा कि यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ जा सकता है और इसे चुनौती दी जाएगी।

इस मामले ने एक बार फिर विवाहित जोड़ों के बीच नैतिकता, कानूनी अधिकार और लैंगिक न्याय पर बहस छेड़ दी है। अब देखना होगा कि उच्चतम न्यायालय इस पर क्या रुख अपनाता है।


Post a Comment

Previous Post Next Post