नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ |
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी नवा रायपुर अब एक नए आकर्षण का केंद्र बन गई है – यहां प्रदेश का पहला ट्राइबल म्यूजियम बनकर तैयार हो गया है। यह संग्रहालय न केवल राज्य की विविध आदिवासी परंपराओं का दस्तावेज है, बल्कि इसमें झलकती है वह जीवनशैली, जो सदियों से जंगलों और पहाड़ों के बीच बसी रही है। इस म्यूजियम का नाम ही हैरान कर देता है – ‘लाल बंगला’।
क्यों खास है ‘लाल बंगला’?
'लाल बंगला' नाम सुनते ही एक भव्य भवन की कल्पना मन में आती है, लेकिन यह म्यूजियम एक बंगले से कहीं अधिक है। यह एक प्रतीक है – आदिवासी समुदायों की आत्मा, उनके विश्वास, उनके डर और उनकी आशाओं का। यहां दिखाया गया है कि कैसे कुछ आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक घरों में बाहरी लोगों का प्रवेश निषिद्ध मानते हैं। म्यूजियम में मौजूद एक मॉडल में दिखाया गया है कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति उनके घर की रसोई में प्रवेश करता है, तो वे उस रसोई को जला देते हैं। यह विश्वास है कि अपवित्रता से बचने का यही एकमात्र उपाय है।
27 से अधिक जनजातियों की संस्कृति एक छत के नीचे
छत्तीसगढ़ में कुल 42 अधिसूचित जनजातियाँ हैं, जिनमें से 27 की प्रमुख संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाज और कला को इस म्यूजियम में दर्शाया गया है। यहां बस्तर, सरगुजा, जशपुर, कोंडागांव और दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्रों की जनजातियों की पारंपरिक झोपड़ियाँ, शिकार करने के औजार, पर्व-त्योहार की झांकियाँ और नृत्य-मंडलियों के मूर्तिरूप प्रदर्शित किए गए हैं।
रचनात्मकता और वास्तविकता का अद्भुत मेल
म्यूजियम की विशेषता यह है कि इसे पूरी तरह वास्तविकता से जोड़ा गया है। झोपड़ियाँ मिट्टी, लकड़ी और गोबर से बनी हैं, और इनमें आदिवासी जीवन का हर छोटा-बड़ा पहलू मौजूद है – रसोई के बर्तन, खेत में उपयोग होने वाले औजार, पूजा स्थल, और पारंपरिक वस्त्रों से सजे पुतले।
यहां एक सेक्शन ऐसा है, जहाँ ‘गोदना’ यानी टैटू की परंपरा को चित्रों और मूर्तियों के माध्यम से दिखाया गया है। आदिवासी महिलाएं किस प्रकार शरीर पर चिन्ह बनवाती हैं, इसका सांस्कृतिक महत्व क्या है – यह सब विस्तार से बताया गया है।
जिंदा हो उठी लोककथाएँ और मिथक
म्यूजियम में छत्तीसगढ़ की लोककथाओं और आदिवासी मिथकों को भी जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। एक कक्ष में ककसा-ककसी (आदिवासी कथा पात्र) की कहानियाँ दीवारों पर चित्रों के माध्यम से उकेरी गई हैं। साथ ही, बैगा जनजाति की जादुई चिकित्सा प्रणाली को भी विस्तार से दर्शाया गया है।
पर्यटकों के लिए खास अनुभव
यह म्यूजियम केवल देखने का स्थान नहीं है, यह एक अनुभव है। आगंतुकों को यहाँ आदिवासी भोजन का स्वाद लेने का अवसर मिलेगा, वहीं पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनें वातावरण में गूंजती हैं। कई लोग पहली बार तीर-कमान चलाना सीख रहे हैं, वहीं बच्चों को आदिवासी खिलौनों और खेलों में खासा आनंद आ रहा है।
डिज़िटल तकनीक से सजी म्यूजियम की दुनिया
म्यूजियम में कई जगहों पर डिजिटल डिस्प्ले लगाए गए हैं, जहाँ वीडियो और डॉक्यूमेंट्री के ज़रिए जनजातीय जीवन के पहलुओं को समझाया गया है। वर्चुअल रियलिटी का उपयोग भी किया गया है, ताकि दर्शक खुद को किसी आदिवासी गांव के बीच खड़ा महसूस कर सकें।
मुख्यमंत्री ने किया उद्घाटन
इस म्यूजियम का उद्घाटन हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा किया गया। उन्होंने कहा, "छत्तीसगढ़ की आत्मा इसके आदिवासियों में बसती है। यह संग्रहालय आने वाली पीढ़ियों को उनकी जड़ों से जोड़ने का काम करेगा।"