रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकारी खर्च पर संचालित शव वाहन सेवा और पोस्टमार्टम के बाद मिलने वाले नि:शुल्क कफन वितरण व्यवस्था में गंभीर अनियमितताएं उजागर हुई हैं। सरकारी व्यवस्था का हिस्सा बने कुछ कर्मचारियों द्वारा शोकाकुल और असहाय परिजनों से जबरन पैसे वसूलने की शिकायतें सामने आई हैं। पोस्टमार्टम के बाद शवों को कफन में लपेटने के लिए 500-500 रुपए की मांग की जा रही है। वहीं, शव वाहन सेवा ‘मुक्तांजलि’ में भी ड्राइवर परिजनों से पैसे वसूल रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, बीते 10 महीनों में इन सेवाओं के जरिए करीब 40 लाख रुपए की अवैध वसूली की गई है।
मामला सामने आया अंबेडकर अस्पताल में
शुक्रवार को राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। कांकेर से लाए गए आदिवासी युवक अजीत का पोस्टमार्टम होने के बाद परिजनों से 500 रुपए की मांग की गई। पीड़ित परिवार ने बताया कि पैसा नहीं देने पर शव को बिना कफन दिए ले जाने की धमकी दी गई। भास्कर रिपोर्टर की मौजूदगी में यह घटना हुई।
10 दिन की पड़ताल में कई खुलासे
अखबार की टीम ने अगले 10 दिन तक मृतकों के परिजनों से बातचीत की और जिला अस्पताल सहित अन्य स्थानों पर पड़ताल की। जांच में यह सामने आया कि रायपुर, अंबिकापुर, बिलासपुर जैसे बड़े अस्पतालों में भी यही स्थिति है। मुक्तांजलि शव वाहन सेवा के ड्राइवर भी 500 से लेकर 1000 रुपए तक की मांग कर रहे हैं। अकेले रायपुर जिले में इस साल अब तक 42263 शव वाहन सेवाएं दी गईं, जिनमें से अधिकतर मामलों में रुपए लिए गए।
सिस्टम की लापरवाही या सुनियोजित वसूली?
सरकार द्वारा पोस्टमार्टम के बाद फ्री में कफन और शव वाहन सेवा उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए बजट में भी स्पष्ट प्रावधान हैं। मुक्तांजलि सेवा के लिए 40 करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है और डीएमएफ फंड से अतिरिक्त राशि भी ली जा सकती है। इसके बावजूद, सिस्टम से जुड़े कुछ कर्मचारी और ड्राइवर आमजन से अवैध पैसे वसूल कर रहे हैं।
अन्य जिलों में भी वसूली की शिकायतें
सिर्फ राजधानी ही नहीं, प्रदेश के अन्य जिलों जैसे अंबिकापुर, महासमुंद और कोरबा से भी ऐसी शिकायतें सामने आई हैं। अंबिकापुर के लुंड्रा इलाके में दो बच्चों की डूबने से मौत के बाद डॉक्टर ने परिजनों से पोस्टमार्टम के लिए 10-10 हजार रुपए की घूस मांगी। शिकायत के बाद डॉक्टर को बर्खास्त और बीएमओ को निलंबित किया गया।
प्रशासन का जवाब
डॉ. पीयूष सिंह, प्रभारी पोस्टमार्टम, जिला अस्पताल रायपुर ने कहा,
"पोस्टमार्टम के लिए दो दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी हैं। अगर पैसे मांगे जा रहे हैं तो यह गंभीर मामला है, इसकी जांच कराई जाएगी।"
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने कहा,
"शव वाहन की सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। ड्राइवर द्वारा पैसे मांगना नियम के खिलाफ है। पहले भी ऐसी शिकायतों पर लोगों को निकाला जा चुका है। परिजन ऐसे मामलों की शिकायत करें।"
जरूरत है सख्त निगरानी और जवाबदेही की
यह मामला सिर्फ अवैध वसूली का नहीं, बल्कि दुख की घड़ी में लोगों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का है। जब सरकारी योजनाएं पीड़ितों तक नहीं पहुंचतीं और सिस्टम के भीतर ही उनका शोषण होता है, तो सवाल उठना लाजमी है। अब जरूरत है कि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस पूरे मामले पर तुरंत संज्ञान ले और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करे।
यह रिपोर्ट स्वतंत्र पत्रकारिता के उद्देश्य से तैयार की गई है और इसमें उपयोग की गई सभी जानकारियां सार्वजनिक स्रोतों एवं पीड़ितों के बयानों पर आधारित हैं।