बिलासपुर – छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी कही जाने वाली अरपा नदी एक बार फिर रेत माफियाओं के निशाने पर है। बरसात के मौसम में शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद कोनी, सेंदरी, घुटकू और कोटा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध रेत उत्खनन जारी है। हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद जिला प्रशासन और खनिज विभाग की निष्क्रियता के कारण यह गैरकानूनी गतिविधि बेखौफ तरीके से चल रही है।
बारिश के मौसम में नदी का जल स्तर सामान्यतः बढ़ा होता है, जिससे उत्खनन से पर्यावरणीय और भौगोलिक असंतुलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसी कारण हर साल 15 जून से राज्य शासन द्वारा वैध और अवैध दोनों प्रकार के रेत उत्खनन एवं परिवहन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। बावजूद इसके, रेत माफिया जेसीबी, हाईवा और ट्रैक्टरों की मदद से नदी के गर्भ से रेत निकाल रहे हैं।
स्थानीय लोगों की मानें तो कोनी थाना क्षेत्र अंतर्गत सेंदरी में दिनदहाड़े रेत की खुदाई हो रही है। जिला सहकारी बैंक के पीछे, सड़क किनारे खुले प्लाट में रेत डंप कर डंपरों में भरकर ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। इस अवैध कारोबार की वजह से बारिश में रेत की कीमतें सामान्य से तीन से चार गुना तक बढ़ गई हैं।
खनिज विभाग, आरटीओ और पुलिस टीम की जिम्मेदारी होती है कि वे रेत के अवैध परिवहन और भंडारण पर निगरानी रखें। लेकिन इन विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली और लापरवाही के कारण माफिया को खुली छूट मिली हुई है। कई स्थानीय नागरिकों ने बताया कि जब माफिया वाहन लेकर मौके पर पहुंचते हैं, तब वे खनिज और पुलिस विभाग को सूचित करते हैं, लेकिन अधिकारी फोन नहीं उठाते। पुलिस तब पहुंचती है जब पूरा उत्खनन और ट्रांसपोर्टेशन हो चुका होता है।
स्थानीय ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि रेत माफियाओं और खनिज विभाग के कुछ अफसरों की मिलीभगत है, जिससे कार्रवाई की बजाय संरक्षण मिलता है। कई बार शिकायत करने के बाद भी न तो एफआईआर होती है और न ही किसी माफिया पर कड़ी कार्रवाई होती है।
इस बीच कांग्रेस नेताओं ने भी मोर्चा खोलते हुए आरोप लगाया है कि कोनी और सेंदरी में जहां रेत खदान प्रतिबंधित है, वहां भी एक भाजपा नेता का करीबी अवैध रेत उत्खनन करवा रहा है। आरोप है कि राजनीतिक दबाव के चलते अधिकारी भी इस मामले में कार्यवाही से बचते हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट के स्पष्ट निर्देशों और सरकार के आदेशों के बावजूद अवैध उत्खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा।
हाईकोर्ट ने पूर्व में पर्यावरण संरक्षण और नदी के प्राकृतिक संतुलन को देखते हुए स्पष्ट निर्देश दिए थे कि बारिश के मौसम में किसी भी प्रकार का उत्खनन नहीं होना चाहिए। अदालत की फटकार के बाद जिला प्रशासन ने कुछ दिनों तक रेत के भंडारण स्थलों पर कार्रवाई की थी, लेकिन यह सिर्फ दिखावे की कार्रवाई साबित हुई।
अब सवाल उठता है कि आखिर कब तक अरपा नदी का यह दोहन इसी तरह चलता रहेगा? क्या खनिज विभाग और पुलिस की निष्क्रियता को लेकर कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे? क्या माफियाओं की राजनीतिक सरपरस्ती का अंत होगा?
इस अवैध उत्खनन से न केवल सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि नदी की जैव विविधता, जलस्तर और आसपास के गांवों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ रही है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में अरपा नदी सिर्फ एक सूखा नाला बनकर रह जाएगी।
अब देखना यह है कि प्रशासन कब जागता है और क्या सच में इस अवैध कारोबार पर लगाम लग पाती है, या फिर यह रेत माफिया शासन-प्रशासन की कमजोरी का फायदा उठाकर प्राकृतिक संसाधनों को यूं ही लूटते रहेंगे।