कोरबा (छत्तीसगढ़)। शिक्षा के क्षेत्र में तमाम योजनाएं और घोषणाएं होने के बावजूद जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। जिले के गोकुल नगर स्थित प्राथमिक शाला की स्थिति इसका जीवंत उदाहरण है। वर्षों से यह स्कूल जर्जर भवन में संचालित हो रहा है और अब स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि बच्चों की जान पर खतरा मंडराने लगा है। मूल भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है, जिसके कारण अब मात्र एक अतिरिक्त कक्ष में कक्षा पहली से पांचवीं तक की पढ़ाई कराई जा रही है।
इस स्कूल में कुल 84 बच्चे दर्ज हैं। जब सभी बच्चे उपस्थिति में होते हैं, तब अतिरिक्त कक्ष छोटा पड़ जाता है, और मजबूरी में विद्यालय के कार्यालय कक्ष को भी क्लासरूम बना दिया जाता है। बरसात के मौसम में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। मूल भवन की छत से पानी टपकता है और फर्श में जलभराव हो जाता है, जिससे इस भवन में बच्चों को पढ़ाना असंभव हो जाता है।
श्रमिक बस्तियों के बच्चों के लिए एकमात्र शैक्षिक विकल्प
गोकुल नगर के इस प्राथमिक स्कूल में ज्यादातर छात्र अटल आवास कॉलोनी और आस-पास की श्रमिक बस्तियों से आते हैं। गरीब मजदूर वर्ग के इन बच्चों के लिए यह स्कूल ही एकमात्र शैक्षिक केंद्र है, लेकिन स्कूल की खस्ताहाल स्थिति उनके भविष्य को अंधकारमय बना रही है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद भी इन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित शिक्षा नहीं मिल रही है।
स्कूल भवन निर्माण की मांग वर्षों से लंबित
स्थानीय लोगों और शाला प्रबंधन समिति ने कई बार शासन और प्रशासन से स्कूल भवन की मरम्मत या पुनर्निर्माण की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्थल निरीक्षण तक करना मुनासिब नहीं समझा, जिससे ग्रामीणों में नाराजगी व्याप्त है।
गांव के ही एक अभिभावक रमेश साहू का कहना है, "हम मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते स्कूल की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। हम डरते हैं कि कहीं भवन गिर न जाए और कोई हादसा हो जाए।"
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन
देशभर में बच्चों को सुरक्षित और समुचित वातावरण में शिक्षा देने की बात कही जाती है, लेकिन कोरबा जिले का यह स्कूल इस बात की सच्चाई को कटघरे में खड़ा करता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम स्पष्ट करता है कि बच्चों को एक सुरक्षित, स्वच्छ और सुविधाजनक विद्यालय भवन मिलना चाहिए। यहां की स्थिति इस अधिनियम का खुला उल्लंघन है।
स्थानीय जनप्रतिनिधि भी बेखबर
स्थानीय जनप्रतिनिधि, पंचायत एवं नगर निगम के पदाधिकारी भी इस मुद्दे पर अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि यह स्कूल शहर की सीमा के निकट है और प्रशासनिक पहुंच में आता है। इसके बावजूद बच्चों को ढहते भवनों में पढ़ाई करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
भविष्य की पीढ़ी को जोखिम में डाल रही सरकार?
गोकुल नगर प्राथमिक स्कूल की यह स्थिति पूरे छत्तीसगढ़ में सरकारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती है। जब तक प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं देगा, तब तक ऐसे स्कूलों में न केवल बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी बल्कि उनके जीवन को भी खतरा बना रहेगा।
समाधान की दिशा में पहल की आवश्यकता
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स्थलीय निरीक्षण: जिला शिक्षा अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को तुरंत स्कूल का निरीक्षण करना चाहिए।
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नवीन भवन का निर्माण: पुराने भवन को ध्वस्त कर नए भवन का निर्माण शीघ्र किया जाए।
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अस्थायी व्यवस्था: जब तक भवन का निर्माण नहीं होता, तब तक वैकल्पिक कक्षाएं किसी सामुदायिक भवन या सरकारी हॉल में चलाई जाएं।
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जनसहयोग: स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर दबाव बनाना चाहिए।