छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार (RTE - राइट टू एजुकेशन) के तहत गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने की योजना के तहत इस वर्ष भी बड़ी संख्या में आवेदन आए। बावजूद इसके, दो चरणों की लॉटरी प्रक्रिया के बाद भी निजी स्कूलों में 6 हजार से अधिक सीटें रिक्त रह गई हैं, जो शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर करती है।
आरटीई के अंतर्गत निजी स्कूलों की एंट्री पॉइंट कक्षाओं (जैसे कि नर्सरी, एलकेजी, कक्षा 1) की कुल 25% सीटें वंचित और कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं। शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए राज्य भर के निजी स्कूलों में कुल 52,035 सीटें आरक्षित की गई थीं। पहले चरण में 1,05,372 ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए थे, जिसमें से 40 हजार बच्चों का चयन किया गया और उनमें से 36 हजार बच्चों ने प्रवेश लिया। 4 हजार सीटें खाली रह गईं।
इसके बाद बचे हुए 16,967 सीटों के लिए दूसरा चरण शुरू किया गया। दूसरे चरण में भी जबरदस्त उत्साह देखा गया और 42,363 आवेदन प्राप्त हुए। दस्तावेजों की जांच के बाद लॉटरी प्रक्रिया के माध्यम से 10,478 बच्चों का चयन किया गया। इस तरह अब तक कुल 50,478 सीटों पर बच्चों का चयन हो चुका है, फिर भी 6 हजार से अधिक सीटें अब तक भर नहीं पाई हैं।
सबसे ज्यादा प्रवेश सूरजपुर में
दूसरे चरण की लॉटरी में सबसे अधिक प्रवेश सूरजपुर जिले में दर्ज किया गया। वहां बीपीएल श्रेणी के बच्चों के लिए 1,496 सीटें उपलब्ध थीं, जिनमें से 1,036 बच्चों का चयन किया गया। रायपुर जिले में 750, बिलासपुर में 972, दुर्ग में 667, जांजगीर-चांपा में 837, बलरामपुर में 671, कोरबा में 504, बलौदाबाजार-भाटापारा में 461 और कबीरधाम (कवर्धा) जिले में 321 बच्चों का चयन किया गया।
रिक्त सीटों को अब स्कूल प्रबंधन भर सकेंगे
अब जो 6 हजार से अधिक सीटें बची हैं, उन्हें संबंधित स्कूल प्रबंधन द्वारा सीधे प्रवेश देकर भरा जाएगा। लेकिन इससे यह भी जाहिर होता है कि या तो अभिभावकों में जानकारी की कमी है, या आवेदन प्रक्रिया में कुछ कमियां हैं जिनके कारण पात्र बच्चे अवसर से वंचित रह जाते हैं।
सिस्टम में सुधार की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि आरटीई के अंतर्गत प्रवेश प्रक्रिया को और पारदर्शी व आसान बनाए जाने की जरूरत है। ऑनलाइन आवेदन और दस्तावेज़ अपलोड की प्रक्रिया अब भी ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के लिए चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। साथ ही, जागरूकता की कमी और स्कूलों की मनमानी भी एक बड़ी समस्या है।
राज्य सरकार के शिक्षा विभाग को अब इन रिक्त सीटों के कारणों की समीक्षा करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी पात्र बच्चा शिक्षा के अधिकार से वंचित न रह जाए।