रायपुर नगर निगम में टेंडर शर्तों को लेकर सवाल, चहेते सप्लायर को फायदा पहुंचाने की आशंका


 

रायपुर नगर निगम के जोन-5 में एक योजना के तहत सिलाई मशीनों के वितरण के लिए जारी टेंडर पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। आरोप है कि अफसरों ने टेंडर की शर्तों में ऐसी खामियां छोड़ी हैं, जिससे केवल पसंदीदा सप्लायर को फायदा पहुंच सके। मामला अब चर्चा का विषय बन गया है और अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

दरअसल, शहरी विकास विभाग की ओर से लाभार्थियों को सिलाई मशीन बांटने के लिए जेम पोर्टल पर टेंडर जारी किया गया। इसमें खरीदी जाने वाली मशीन की स्पष्ट स्पेसिफिकेशन ही दर्ज नहीं की गई। टेंडर में केवल इतना उल्लेख किया गया कि "हाउसहोल्ड जिग-जैग सेविंग मशीन हेड (क्यू3)" की जरूरत है। यह एक सामान्य श्रेणी है, जिसके तहत कई कंपनियां अलग-अलग मॉडल बाजार में उपलब्ध कराती हैं। उदाहरण के लिए, ऊषा और अन्य बड़ी कंपनियां कम से कम 5 से 6 मॉडल इस श्रेणी में बनाती हैं।



स्पेसिफिकेशन स्पष्ट न होने के कारण यह आशंका जताई जा रही है कि निगम का टेंडर किसी विशेष व्यापारी या ठेकेदार को ध्यान में रखकर ही तैयार किया गया है। निगम कार्यालय से जुड़े सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि टेंडर में तकनीकी जानकारी इसलिए नहीं जोड़ी गई, ताकि चहेते सप्लायर को ही सीधा लाभ दिया जा सके। इतना ही नहीं, इस टेंडर की अंतिम तिथि भी 16 अगस्त रखी गई, जब बीच में छुट्टियां पड़ रही थीं। सूत्रों का कहना है कि यह रणनीति इसलिए बनाई गई ताकि आम सप्लायरों को पर्याप्त समय ही न मिल सके।


जब इस गड़बड़ी को लेकर अधिकारियों से जवाब मांगा गया तो जोन-5 के अधिकारी सीधे जवाब देने से बचते नजर आए। वहीं, कार्यपालक अभियंता (ईई) लाल महेंद्र प्रताप सिंह ने इस पूरे मामले को तकनीकी त्रुटि करार दिया। उनका कहना है कि टेंडर अपलोड करते समय कुछ खामियां रह गईं, जिन्हें अब सुधारने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। सिंह ने बताया कि जेम पोर्टल पर मौजूद टेंडर दस्तावेजों को दोबारा जांचा जा रहा है और जल्द ही अमेंडमेंट जारी कर टेंडर को री-अपलोड किया जाएगा। साथ ही, टेंडर की आखिरी तारीख भी दो दिन के लिए बढ़ाई जाएगी।

अभियंता का कहना है कि यदि किसी को टेंडर की शर्तों को लेकर आपत्ति है तो वह अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। उन आपत्तियों को गंभीरता से लिया जाएगा और जरूरत पड़ने पर संशोधन किया जाएगा।

हालांकि, जानकारों का मानना है कि यह मामला केवल "टेक्निकल इरर" भर नहीं है। दरअसल, सरकारी खरीद प्रक्रियाओं में अक्सर इस तरह की चालें चली जाती हैं, जिसमें शर्तें इस तरह रखी जाती हैं कि केवल खास व्यापारी ही योग्य साबित हो। मशीन की गुणवत्ता, ब्रांड या मॉडल की जानकारी स्पष्ट रूप से दर्ज न करना इसी दिशा की ओर इशारा करता है।

लोगों का कहना है कि जब लाभार्थियों को सरकारी योजना के तहत सिलाई मशीन दी जानी है, तो यह बेहद जरूरी है कि खरीदी की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो। अगर मशीन की क्वालिटी और मॉडल पर साफ शर्तें नहीं होंगी, तो न केवल योजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होंगे बल्कि गरीब लाभार्थियों को घटिया सामान मिलने का खतरा भी रहेगा।

मामले के सामने आने के बाद अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या केवल तारीख बढ़ा देने और अमेंडमेंट जारी करने से पारदर्शिता सुनिश्चित हो पाएगी। क्योंकि, एक बार जब शर्तें किसी खास व्यक्ति को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई हों, तो उसमें बदलाव करने का फैसला भी अक्सर औपचारिकता भर रह जाता है।

फिलहाल, नगर निगम के जोन-5 में जारी यह टेंडर विवाद चर्चा में है। यदि जांच और पारदर्शिता से समझौता किया गया तो यह न केवल निगम की साख पर असर डालेगा, बल्कि उन लाभार्थियों की उम्मीदों पर भी पानी फेर देगा, जिन्हें इस योजना के जरिए स्वरोजगार का साधन मिलना था।

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