बिलासपुर में 43 लाख की नौकरी ठगी: सरकारी पद दिलाने के नाम पर गिरोह सक्रिय, पुलिस ने पीड़ित को भी बनाया आरोपी




बिलासपुर, छत्तीसगढ़।
सरकारी नौकरी का सपना संजोए परिवार के साथ बड़ा धोखा हुआ है। बिलासपुर में फूड इंस्पेक्टर, पटवारी और हॉस्टल अधीक्षक जैसे पदों पर नौकरी लगाने के नाम पर एक परिवार से 43 लाख रुपए की ठगी का मामला सामने आया है। यह ठगी कथित तौर पर एक सुनियोजित गिरोह द्वारा की गई, जिसमें खुद को मंत्रालय से जुड़ा बताने वाला मुख्य आरोपी और उसके सहयोगी शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि ठगी का शिकार हुए पिता को भी अब पुलिस ने आरोपी बनाकर जेल भेज दिया है।

पुराने परिचय पर रखा भरोसा, गंवाए लाखों

उसलापुर के नेचर सिटी निवासी सूर्यकांत जायसवाल (55) के दो बेटे और एक बेटी हैं। उनके परिचित तखतपुर निवासी विष्णु प्रसाद राजपूत (67) ने उन्हें जावेद खान नामक व्यक्ति से मिलवाया, जो खुद को मंत्रालय में पदस्थ बताता था और सरकारी नौकरी दिलाने का दावा करता था। जावेद ने विश्वास दिलाया कि उसकी पहुंच कई विभागों तक है और वह आसानी से सरकारी नौकरी दिला सकता है।

पति-पत्नी की ठग जोड़ी ने वसूले पैसे

साल 2022 की शुरुआत से लेकर जून 2023 तक सूर्यकांत जायसवाल से अलग-अलग किस्तों में 43 लाख रुपए वसूले गए। यह राशि जावेद खान, उसकी पत्नी सीमा खान, अनीश राजपूत और विष्णु राजपूत के माध्यम से ली गई। वादे के अनुसार फूड इंस्पेक्टर, हॉस्टल अधीक्षक और पटवारी की नौकरी दिलाने की बात कही गई, लेकिन दो साल बाद भी किसी को नौकरी नहीं मिली।

जब सामने आया गिरोह का सच, तब की शिकायत

लंबे इंतजार के बाद जब नौकरी नहीं मिली और जानकारी मिली कि जावेद पहले भी कई लोगों को इसी तरह ठग चुका है, तब सूर्यकांत ने एसएसपी रजनेश सिंह से शिकायत की। जांच का जिम्मा कोटा एसडीओपी को सौंपा गया। लेकिन जांच के बाद एक चौंकाने वाला मोड़ आया। पुलिस ने ठगी करने वालों के साथ-साथ शिकायतकर्ता सूर्यकांत को भी आरोपी बना दिया।

“नियमों का उल्लंघन कर किया अपराध”

जांच अधिकारी भारती मरकाम का कहना है कि सूर्यकांत जायसवाल ने शासकीय नियुक्ति की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और बेईमानी की मंशा से पैसे देकर शासन के साथ धोखाधड़ी की। इसी आधार पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है।

आरोपी गिरोह का नेटवर्क कई जिलों तक फैला

पुलिस जांच में सामने आया है कि जावेद खान का नेटवर्क बिलासपुर के अलावा बेमेतरा, दुर्ग, रायपुर और बलौदाबाजार तक फैला है। वह युवाओं से शैक्षणिक दस्तावेज, जाति प्रमाण पत्र, आधार कार्ड और कोरे कागज पर हस्ताक्षर लेकर नौकरी दिलाने का झांसा देता था। अब तक कई बेरोजगार उसकी ठगी के शिकार हो चुके हैं।

कानून विशेषज्ञों की राय

हाईकोर्ट के अधिवक्ता समीर सिंह का कहना है कि सरकारी नियुक्ति में पैसे लेना-देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं, लेकिन पुलिस का पीड़ित को आरोपी बनाना चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “यह कार्रवाई भविष्य में अन्य पीड़ितों को सामने आने से रोकेगी और असली अपराधी बच निकलेंगे।”

सवालों के घेरे में पुलिस की कार्रवाई

इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। आरोप है कि पुलिस असली ठगों को गिरफ्तार करने के बजाय ठगी के शिकार लोगों को ही कानून के कठघरे में खड़ा कर रही है। इससे आने वाले समय में ऐसे पीड़ितों का न्याय की उम्मीद से भरोसा उठ सकता है।




Post a Comment

Previous Post Next Post