250 से ज्यादा मौतें, 62 करोड़ मुआवजा बांटा, लेकिन अब तक कोई ठोस निगरानी तंत्र नहीं
रायपुर।
पिछले चार वर्षों में छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों के हमले में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई है। जंगलों से निकलकर इंसानी बस्तियों तक पहुंच रहे हाथियों के झुंडों ने 15,510 हेक्टेयर से ज्यादा फसलें भी तबाह की हैं। इसके बदले सरकार ने करीब 62 करोड़ रुपये का मुआवजा तो बांटा, लेकिन निगरानी के नाम पर जो तंत्र बनाया गया था, वो अब नाममात्र का दिखावा बनकर रह गया है।
कॉलर आईडी सिस्टम दो साल से बंद, मॉनिटरिंग सेल सिर्फ कागजों में
प्रदेश में जंगली हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कॉलर आईडी से लैस सैटेलाइट सिस्टम शुरू किया गया था, लेकिन यह दो साल पहले ही बंद हो चुका है। इसके बाद वन विभाग ने रायपुर के जंगल सफारी में एक स्टेट एलिफेंट मॉनिटरिंग सेल शुरू किया। लेकिन भास्कर रिपोर्टर की पांच दिन की पड़ताल में यह सेल हर दिन बंद ही मिला।
सेल में न तो कोई सैटेलाइट स्क्रीन है, न कंप्यूटर सिस्टम, न एलईडी मॉनिटर। एक मेज और कुछ कुर्सियों को ही निगरानी कक्ष बना दिया गया है। स्टाफ के मुताबिक, वहां तैनात गार्ड कभी-कभी आता है।
फसल नुकसान में 250 करोड़ का हक, मिला सिर्फ 31 करोड़
कृषि महाविद्यालय के डीन और वैज्ञानिक डॉ. जीके दास का कहना है कि सरकार यदि फसल नुकसान का समर्थन मूल्य के आधार पर आकलन करे, तो किसानों को कम से कम 250 करोड़ रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए। लेकिन अब तक महज 31 करोड़ रुपये ही बांटे गए हैं।
कटघोरा में 48 हाथियों का डेरा, गांवों में दहशत का माहौल
कटघोरा वन मंडल के तहत आने वाले गांवों में 48 हाथियों के झुंड अलग-अलग इलाकों में घूम रहे हैं। वन विभाग शाम को मुनादी कराता है, लेकिन कोई ठोस उपाय नहीं किए जाते।
तीन दिन पहले कोरबा के बनिया गांव में एक ग्रामीण तीजराम धोबी (38) की हाथी हमले में मौत हो गई।
बीजाडाड़ गांव में दंतैल हाथियों ने तीन दिनों तक तांडव मचाया, चार मकानों को तोड़ दिया। ग्रामीण रतजगा कर मशालें लेकर पहरा दे रहे हैं। वहीं, केंदई और परला इलाकों में 11-11 हाथियों के झुंड सक्रिय हैं।
वन विभाग ड्रोन कैमरों की मदद लेने की बात तो करता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई सुरक्षा उपाय नहीं दिखते। न किसी हाथी में कॉलर आईडी है, न कोई वास्तविक निगरानी तंत्र।
वन विभाग की नाकामी, ग्रामीणों की जान जोखिम में
हाथी मित्र दल केवल सूचना देकर ग्रामीणों को सतर्क करता है, लेकिन हमले रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। विभाग की लापरवाही से हर दिन जान-माल का खतरा बढ़ता जा रहा है।
समाधान की दरकार
राज्य सरकार को चाहिए कि
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फिर से कॉलर आईडी सिस्टम सक्रिय किया जाए,
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हर प्रभावित जिले में फुल टाइम मॉनिटरिंग सेल स्थापित हो,
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किसानों को वास्तविक नुकसान का मुआवजा दिया जाए,
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और गांवों में स्थायी हाथी रोधी इंतजाम किए जाएं।
जब तक वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ मानव जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक ऐसे हादसे रुकना मुश्किल है।