छत्तीसगढ़: पेट्रोल पंपों से हटाया सरकारी नियंत्रण, उपभोक्ता अधिकारों पर मंडराया खतरा लाइसेंस प्रणाली खत्म, अब नहीं होगी गुणवत्ता और माप की जांच; उपभोक्ता संगठनों ने जताई गहरी चिंता


 

रायपुर। केंद्र सरकार के निर्देश के तहत छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में अब पेट्रोल पंपों को खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग के नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है। इससे पेट्रोल पंप संचालकों को लाइसेंस लेने की बाध्यता समाप्त हो गई है। हालांकि यह निर्णय व्यापारिक स्वतंत्रता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन इससे उपभोक्ता संरक्षण और ईंधन की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

नई व्यवस्था के तहत अब यह स्पष्ट नहीं है कि पेट्रोल-डीजल में मिलावट, माप में गड़बड़ी या अधिक कीमत वसूली जैसी शिकायतों पर कार्रवाई कौन करेगा। पहले उपभोक्ता विभाग के अधिकारी इन मामलों की निगरानी करते थे, लेकिन अब यह प्रणाली बंद कर दी गई है।

उपभोक्ता संगठन हुए सतर्क
इस बदलाव के बाद उपभोक्ता अधिकार संगठनों ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि निगरानी तंत्र समाप्त होने से मिलावटी ईंधन के मामले बढ़ सकते हैं और आम जनता के हितों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। उपभोक्ता संगठन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सरकार को कोई वैकल्पिक निगरानी तंत्र विकसित करना चाहिए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

मध्यप्रदेश में भी बढ़ा विवाद
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के काफिले की गाड़ियों में मिलावटी पेट्रोल की शिकायत सामने आने के बाद पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि बिना निगरानी के पेट्रोल पंपों पर अनुशासन बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

एथेनाल मिश्रण बना नया विवाद
सरकार ने पेट्रोल में 10% तक एथेनाल मिलाने की अनुमति दी है, जो 2025 तक 20% तक बढ़ाई जानी है। विशेषज्ञों के अनुसार, एथेनाल सस्ता होने के कारण कंपनियां इससे मुनाफा कमा सकती हैं। अगर इस पर नियंत्रण नहीं रहा तो मिलावट बढ़ सकती है, जिससे न केवल आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि वाहन इंजनों को भी तकनीकी क्षति पहुंच सकती है।

विशेषज्ञ की राय
सेवानिवृत्त खाद्य अधिकारी संजय दुबे का कहना है, "यदि पेट्रोल में एथेनाल की मिलावट की सही जांच नहीं हुई तो यह सुनियोजित मुनाफाखोरी का जरिया बन सकता है। इससे उपभोक्ताओं की जेब और गाड़ियों की सेहत दोनों पर असर पड़ेगा।"

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