बिलासपुर। शहर का मोपका-सेंदरी बायपास इन दिनों हादसों और जाम का केंद्र बन चुका है। कभी शहर के भीतर ट्रैफिक का दबाव कम करने के लिए बनाई गई यह सड़क अब खुद सबसे बड़ी समस्या बन गई है। करीब 14 किलोमीटर लंबे इस बायपास पर दो हजार से ज्यादा छोटे-बड़े गड्ढे हैं। इनमें करीब 100 गड्ढे इतने गहरे हैं कि कभी भी कोई जानलेवा हादसा हो सकता है। डेढ़ से दो फीट तक गहरे गड्ढों में भारी वाहनों के पहिए धंस रहे हैं।
हर दिन जाम, अब लोग सड़क से बच रहे
दैनिक आवाजाही करने वालों के मुताबिक, अब इस रास्ते पर बाइक और कार से चलना बेहद खतरनाक हो चुका है। कई वाहन चालक अब शहर के भीतर से होकर जाना मजबूरी मान रहे हैं। वहीं, भारी वाहनों की मजबूरी है कि वे इसी रास्ते से गुजरें। 8 जुलाई को भी इस सड़क पर 42 ट्रकों की लंबी कतार लगी रही, क्योंकि कई वाहन गड्ढों में फंस गए थे। कई घंटे तक जाम लगा रहा।
35.88 करोड़ में बनी सड़क 3 साल में ही उखड़ी
राज्य सरकार ने इस सड़क का निर्माण साल 2016 में 35.88 करोड़ रुपए की लागत से करवाया था। लेकिन सड़क बनने के महज दो-तीन साल बाद ही इसकी परतें उखड़ने लगी थीं। अब हालात ऐसे हैं कि मरम्मत पर 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, बावजूद इसके सड़क पूरी तरह ध्वस्त है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, सड़क निर्माण के दौरान मुरुम की जगह आसपास के खेतों की काली मिट्टी का इस्तेमाल किया गया, जो तय मानकों से बेहद कमजोर है। यही वजह है कि सड़क दलदली हो गई है।
जिम्मेदारों पर सवाल, लेकिन कार्रवाई नहीं
इस सड़क के निर्माण में भारी लापरवाही की बात सामने आ चुकी है। निर्माण के समय एसडीओ रहे उमेश नायक अब रिटायर हो चुके हैं, जबकि तत्कालीन कार्यपालन अभियंता आरके खांबरा अब सेतु विभाग में ईई हैं। सड़क का निर्माण रायगढ़ की ठेका कंपनी अनिल अग्रवाल ने किया था। जानकारों के अनुसार, जीएसबी लेयर, बेस कोर्स और बीटी लेयर में तय मानकों का पालन नहीं किया गया, जिससे यह सड़क भारी वाहनों के लायक कभी बनी ही नहीं।
सड़क बनाने का प्रस्ताव फंसा मंत्रालय में
PWD के ईई सीएस विंध्यराज ने बताया कि इस सड़क को नए सिरे से बनाने के लिए प्रस्ताव मंत्रालय भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही काम शुरू होगा। सड़क को फिर से बनाने के लिए करीब 1 मीटर तक खुदाई करनी पड़ेगी, तभी मजबूत आधार तैयार हो सकेगा।
हर दिन हजार गाड़ियों का ट्रैफिक, अब बच रहे लोग
मोपका-सेंदरी बायपास पर रोजाना करीब 1 हजार वाहनों की आवाजाही होती है, जिनमें भारी वाहन प्रमुख हैं। दोपहिया और चार पहिया वाहन चालक अब इस रास्ते से बच रहे हैं। यह बायपास रतनपुर हाईवे से जोड़ता है और इसकी वजह से रतनपुर जाने में करीब 13 किलोमीटर और 45 मिनट की बचत होती है। यही वजह है कि जांजगीर, कोरबा और सीपत से आने-जाने वाले लोग इसी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।
फिलहाल सड़क पर सिर्फ खतरा
फिलहाल इस सड़क से गुजरना जोखिम भरा है। गहरे गड्ढों और उखड़ी सड़क पर हादसे का खतरा हर कदम पर बना हुआ है। स्थानीय लोग अब जल्द से जल्द इस सड़क की मरम्मत और नए निर्माण की मांग कर रहे हैं।