बिलासपुर, छत्तीसगढ़ | 17 जुलाई 2025
बिलासपुर के सिम्स (छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अब मरीजों को डिजिटल हस्ताक्षरयुक्त कंप्यूटराइज्ड जांच रिपोर्ट प्रदान की जाएगी। यह व्यवस्था करीब 25 वर्षों में पहली बार शुरू की गई है। मरीजों को अब हाथ से लिखी रिपोर्ट की जगह अधिक विश्वसनीय, स्पष्ट और पारदर्शी डिजिटल रिपोर्ट मिलेगी, जिस पर अधिकृत चिकित्सकों के हस्ताक्षर भी होंगे।
संभाग में पहला मेडिकल कॉलेज अस्पताल बना सिम्स
सिम्स प्रबंधन ने जानकारी दी है कि बिलासपुर संभाग में यह सुविधा देने वाला यह पहला मेडिकल कॉलेज अस्पताल बन गया है। जबकि इसी संभाग में रायगढ़ और कोरबा जैसे प्रमुख मेडिकल कॉलेज भी स्थित हैं, लेकिन वहां फिलहाल इस प्रकार की डिजिटल प्रणाली लागू नहीं हो पाई है।
रोजाना 1800 मरीजों को मिलेगा लाभ
सिम्स में हर दिन औसतन 1600 से 1800 मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। कंप्यूटराइज्ड रिपोर्ट व्यवस्था से इन मरीजों को सही समय पर स्पष्ट जांच रिपोर्ट मिल सकेगी। यह कदम न सिर्फ समय की बचत करेगा, बल्कि रिपोर्ट की गुणवत्ता व प्रमाणिकता भी सुनिश्चित करेगा।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद हुआ सुधार
बता दें कि वर्ष 2000 में स्थापित सिम्स अस्पताल में यह बदलाव छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद किया गया है। रिपोर्टिंग व्यवस्था को पारदर्शी और आधुनिक बनाने पर अदालत ने विशेष जोर दिया था।
पैथोलॉजी विभाग में सबसे पहले शुरू हुई सुविधा
यह डिजिटल रिपोर्ट सुविधा सबसे पहले पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री विभागों में शुरू की गई है। सिम्स के अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लखन सिंह और आईटी सेल प्रभारी डॉ. कमलजीत बाशन की टीम ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इसे समयसीमा में क्रियान्वित किया।
प्रशासनिक अधिकारियों ने दिए थे निर्देश
बिलासपुर संभाग के आयुक्त सुनील जैन और कलेक्टर संजय अग्रवाल ने अस्पताल के निरीक्षण के दौरान स्पष्ट निर्देश दिए थे कि जांच रिपोर्ट की प्रक्रिया को डिजिटल और प्रमाणिक बनाया जाए। इसी के तहत सिग्नेचरयुक्त कंप्यूटराइज्ड रिपोर्ट प्रणाली की नींव रखी गई।
मरीजों और परिजनों ने जताई संतुष्टि
नए बदलाव से मरीजों और उनके परिजनों में संतोष का भाव देखा जा रहा है। परिजनों का कहना है कि अब रिपोर्ट खोने या समझ में न आने जैसी परेशानियां नहीं रहेंगी। रिपोर्ट ऑनलाइन व स्पष्ट फॉर्मेट में मिलेगी जिससे इलाज में देरी की संभावना कम होगी।
यह पहल राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों के लिए एक उदाहरण बन सकती है, और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में अन्य जिलों के अस्पताल भी इसी तरह की पारदर्शी और तकनीकी व्यवस्था को अपनाएंगे।