बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में फैमिली कोर्ट के आदेश को त्रुटिपूर्ण मानते हुए पति की तलाक याचिका को मंजूरी दे दी है। यह मामला राज्य के जांजगीर-चांपा जिले से जुड़ा है, जिसमें पति-पत्नी के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी मेडिकल प्रमाण के किसी व्यक्ति पर नपुंसकता का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है और ऐसे रिश्ते को बनाए रखना कानून व न्याय के खिलाफ होगा।
क्या है पूरा मामला?
जांजगीर-चांपा निवासी एक शिक्षक की शादी वर्ष 2013 में बलरामपुर जिले की एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से हुई थी। शुरुआत में सब कुछ सामान्य रहा, लेकिन कुछ समय बाद दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हो गया। महिला ने नौकरी छोड़ने या ट्रांसफर कराने का दबाव बनाना शुरू किया, जिससे रिश्तों में तनाव गहराता गया।
2017 में दोनों के बीच अलगाव हो गया और वे अलग-अलग रहने लगे। इसके सात साल बाद 2022 में पति ने जांजगीर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी। सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाया, लेकिन उसके पास कोई मेडिकल प्रमाण नहीं था।
फैमिली कोर्ट ने की याचिका खारिज, हाईकोर्ट में दी गई चुनौती
फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद तलाक की अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बताया कि पत्नी के झूठे आरोपों के कारण उसका मानसिक और सामाजिक जीवन प्रभावित हुआ है। साथ ही, वह पिछले 7 वर्षों से पत्नी से अलग रह रहा है और वैवाहिक जीवन पूरी तरह टूट चुका है।
पत्नी ने लगाए थे अवैध संबंध के भी आरोप
पति ने अदालत को यह भी बताया कि जब सामाजिक बैठक कर रिश्तों को सुधारने की कोशिश की गई, तब भी पत्नी ने सुलह कराने आए अपने जीजा से ही विवाद कर लिया। इसके अलावा, उसने पति पर पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ अवैध संबंध रखने का भी झूठा आरोप लगाया था।
हाईकोर्ट का दो टूक फैसला
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को "गंभीर त्रुटिपूर्ण" करार दिया और इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा बिना प्रमाण गंभीर आरोप लगाना मानसिक प्रताड़ना है और यह क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसके अलावा, पति द्वारा विवाह को बनाए रखने के प्रयासों को भी कोर्ट ने सराहा और माना कि वैवाहिक संबंधों में सुधार की संभावना अब नहीं बची है।
मानसिक क्रूरता को बताया तलाक का आधार
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यौन अक्षमता के आरोप जैसे संवेदनशील विषयों पर बिना ठोस आधार या मेडिकल रिपोर्ट के कोई टिप्पणी करना न केवल चरित्र हनन है, बल्कि मानसिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा भी है। इसे विवाह के मूल आधार ‘विश्वास और सम्मान’ के खिलाफ माना गया।