रायपुर।
छत्तीसगढ़ की स्कूली शिक्षा को लेकर सामने आई केंद्र सरकार की रिपोर्ट ‘परख’ ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने रख दी है। यह रिपोर्ट राज्य के सरकारी, निजी और सहायता प्राप्त स्कूलों के नौवीं कक्षा के छात्रों के भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के ज्ञान का आकलन करती है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में स्कूली शिक्षा के स्तर को लेकर कई गंभीर कमियां हैं, जिनमें से कई सीधे बच्चों के बौद्धिक विकास और स्कूल में उनके सुरक्षित माहौल से जुड़ी हुई हैं।
संविधान की समझ कमजोर, राष्ट्रीय आंदोलन के विचारों से अंजान
सोशल साइंस में खासकर संविधान और राष्ट्रीय आंदोलन जैसे विषयों पर बच्चों की समझ बेहद सीमित है। नौवीं कक्षा के बच्चों में से सिर्फ 45% बच्चे ही संविधान निर्माण प्रक्रिया और उससे जुड़े विचारों को सही तरीके से समझ पाए। रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों को यह नहीं पता कि संविधान कैसे बना, उसमें किन विचारों को जगह दी गई, और किन स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान इसमें शामिल है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत के बराबर जरूर है, लेकिन यह भी इस बात का संकेत है कि सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई में सुधार की बड़ी जरूरत है।
गणित सबसे कमजोर विषय, सिर्फ 26% बच्चे समझते हैं प्रतिशत और भिन्न
रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा गणित को लेकर आया है। जब बच्चों से पूछा गया कि 40 छात्रों की कक्षा में यदि 50% छात्राएं हैं तो छात्राओं की संख्या कितनी होगी, तो केवल 26% बच्चे ही सही जवाब दे पाए। वहीं, 1/4 को 0.25 में बदलने जैसे फ्रैक्शन और दशमलव से जुड़े सवालों को केवल 29% छात्र समझ सके। यह प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत (28% और 31%) से नीचे है, जो इस बात को स्पष्ट करता है कि बुनियादी गणित की शिक्षा में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।
साइंस में भी स्थिति चिंताजनक, सिर्फ 37% बच्चों को बायोलॉजिकल चेंज की समझ
विज्ञान की बात करें तो सिर्फ 37% छात्र ही पदार्थों में होने वाले भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों को समझ पाए। चुंबकीय गुणों और पृथ्वी की चुंबकीय प्रकृति जैसे विषयों पर सिर्फ 38% छात्रों ने सही उत्तर दिए। यह भी नेशनल औसत से 2-3% नीचे है। यह साफ दर्शाता है कि विज्ञान के कांसेप्ट्स को समझाने में शिक्षकों और शिक्षण पद्धति दोनों में सुधार की दरकार है।
लैंग्वेज में हालात बेहतर, लेकिन सुधार की गुंजाइश बाकी
भाषा के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के छात्र राष्ट्रीय औसत (54%) के करीब यानी 53% पर हैं। छात्रों को खबर या लेख को पढ़कर उसकी मुख्य बातें निकालने और सारांश बनाने जैसे कार्यों में औसत प्रदर्शन मिला। हालांकि यह थोड़ी राहत की बात जरूर है, लेकिन इस पर भी काम करने की जरूरत है ताकि बच्चे समझने और अभिव्यक्ति की क्षमता में और बेहतर कर सकें।
बुनियादी सुविधाओं की कमी: लैब, टॉयलेट, कंप्यूटर की हालत खराब
छत्तीसगढ़ के 33% स्कूलों में 11वीं कक्षा के छात्रों के लिए प्रयोगशाला ही नहीं है। 48% स्कूलों में कंप्यूटर उपलब्ध नहीं हैं, जबकि 50% से अधिक बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन है। 18% स्कूलों में छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग टॉयलेट नहीं हैं, जो स्वच्छता और लैंगिक समानता दोनों के लिहाज से गंभीर मुद्दा है।
बुलिंग एक बड़ी समस्या, एन्टी-बुलिंग नीति का अभाव
रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य के 46% स्कूलों में कोई एंटी-बुलिंग पॉलिसी नहीं है, जबकि 32% बच्चे रोज अपने क्लासमेट्स द्वारा चिढ़ाए जाते हैं और 28% का मजाक उड़ाया जाता है। इससे बच्चे स्कूल को सुरक्षित स्थान नहीं मानते, जो उनकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डालता है।
10वीं के बाद 20% बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं
स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का आंकड़ा भी चिंता का विषय है। 10वीं के बाद हर 10 में से 2 बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं, जो राज्य के लिए गंभीर शिक्षा संकट की ओर इशारा करता है।
लड़कियां आगे, गांव के बच्चे शहरी बच्चों से बेहतर
रिपोर्ट की खास बात यह रही कि ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे चारों विषयों—भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान—में शहरी बच्चों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं लड़कियों ने भाषा, गणित और विज्ञान में लड़कों से बेहतर अंक हासिल किए हैं। केवल सामाजिक विज्ञान में दोनों का प्रदर्शन बराबर रहा।
प्राइवेट स्कूल सरकारी स्कूलों से पीछे
एक और रोचक पहलू यह रहा कि निजी स्कूलों के छात्रों का प्रदर्शन सरकारी स्कूलों की तुलना में कम रहा। भाषा, गणित और विज्ञान में निजी स्कूलों के बच्चे 2% पीछे रहे जबकि सामाजिक विज्ञान में 1% पीछे। वहीं राज्य सरकार के सहायता प्राप्त स्कूलों का प्रदर्शन काफी संतुलित और बेहतर रहा।
जातिगत आधार पर परफॉर्मेंस में अंतर
एसटी (जनजातीय) वर्ग के बच्चों का प्रदर्शन सभी विषयों में राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा। वहीं एससी छात्रों ने भाषा में अच्छा स्कोर किया लेकिन गणित में 2% पीछे रहे। ओबीसी छात्रों का प्रदर्शन लगभग राष्ट्रीय औसत के बराबर रहा। सामान्य वर्ग के छात्रों ने सभी विषयों में राष्ट्रीय औसत से ऊपर स्कोर किया।