रायपुर। शहर के गरीब और जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं घर के पास उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू किए गए हमर क्लीनिक की हालत बदहाल है। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य था कि शहर के हर वार्ड में एक क्लीनिक हो, जहां 150 प्रकार की दवाइयां और अनेक प्रकार की प्राथमिक जांच सुविधाएं उपलब्ध हों। लेकिन भास्कर की टीम द्वारा शहर के 10 से ज्यादा क्लीनिकों की पड़ताल में सामने आया कि अधिकतर केंद्रों में डॉक्टर ही नहीं हैं।
टीम त्रिमूर्ति नगर, तेलीबांधा, श्यामनगर, मठपुरैना, मोवा, बीरगांव, हांडीपारा, राठौर चौक, मठपारा, देवेंद्र नगर और नयापारा जैसे क्षेत्रों में पहुंची। यहां एक-दो केंद्रों को छोड़ दें तो बाकी में डॉक्टर नदारद मिले। कई केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं तक की कमी है — न मरीज के बैठने की व्यवस्था है, न इंजेक्शन लगाने के लिए बेड, न ही टॉयलेट। कई जगहों पर जरूरी दवाइयों जैसे टिटनेस इंजेक्शन तक की अनुपलब्धता देखी गई। स्थिति इतनी खराब है कि कहीं स्टाफ नर्स मरीजों की जांच कर दवा दे रही हैं, तो कहीं चौथी श्रेणी के कर्मचारी यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
देवेंद्र नगर: एक कमरे में, बिना बोर्ड के चल रहा क्लीनिक
देवेंद्र नगर का क्लीनिक सामुदायिक भवन की पहली मंजिल पर संचालित हो रहा है, जिसकी हालत बेहद खराब है। छत से पपड़ी गिर रही है और कोई सूचना बोर्ड तक नहीं लगा है। यहां सिर्फ एक स्टाफ नर्स तैनात है, जो मरीजों को देख भी रही है और दवा भी दे रही है। डॉक्टर की पोस्टिंग टीबी अस्पताल में कर दी गई है और अन्य कर्मचारी सीएमएचओ ऑफिस में अटैच हैं।
मठपारा: फार्मासिस्ट कर रहा डॉक्टर का काम
मठपारा में एक 2 बीएचके मकान में क्लीनिक संचालित हो रहा है। फार्मासिस्ट मरीजों से बीमारी की जानकारी लेकर खुद ही दवाइयां दे रहा है। डॉक्टर के लिए निर्धारित कमरा बंद पड़ा है। एक अन्य कमरे में थोड़ा-बहुत ड्रेसिंग का सामान रखा गया है, लेकिन न तो पर्याप्त जगह है, न ही आवश्यक मेडिकल उपकरण।
त्रिमूर्ति नगर: क्लीनिक के नाम पर सिर्फ नाम
त्रिमूर्ति नगर के सामुदायिक भवन में क्लीनिक का संचालन हो रहा है। ऊपर की मंजिल में आंगनबाड़ी है, नीचे के दो कमरों में से एक में डॉक्टर का कमरा बंद है, और दूसरे में स्टाफ नर्स बैठती हैं। यहां भी संसाधनों की भारी कमी है और मरीजों के बैठने की व्यवस्था तक नहीं है।
25 हमर क्लीनिकों में नहीं हैं डॉक्टर
रायपुर शहर में कुल 52 हमर क्लीनिक हैं। सीएमएचओ मिथिलेश चौधरी ने बताया कि डॉक्टरों की भर्ती पिछले कुछ वर्षों से बंद है। मेडिकल ऑफिसरों की भारी कमी है। जिन क्लीनिकों में दवा और अन्य संसाधनों की कमी है, उन्हें जांचने का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव
कई क्लीनिक एक कमरे में संचालित हो रहे हैं जहां टॉयलेट तक नहीं है। इंजेक्शन देने या प्राथमिक इलाज के लिए बेड नहीं है। दवाओं की आपूर्ति भी पूरी नहीं है। स्टाफ की कमी इतनी गंभीर है कि कई क्लीनिकों में फार्मासिस्ट या ग्रेड-4 कर्मचारी ही इलाज और दवा वितरण का कार्य कर रहे हैं।
सवालों के घेरे में सरकार की योजना
हमर क्लीनिक योजना की घोषणा एक जनहित योजना के रूप में हुई थी, लेकिन मौजूदा हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि इसे केवल “कागजों की योजना” बनाकर छोड़ दिया गया है। डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया बंद है, क्लीनिकों की मॉनिटरिंग नहीं हो रही, और मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा है।