बिलासपुर, छत्तीसगढ़ – छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में हाल ही में हुए एक घटनाक्रम ने शासन और प्रशासन दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मामला है बिलासपुर-रायपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुछ युवाओं द्वारा ट्रैफिक रोककर कारों का काफिला खड़ा करने और उसका वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर प्रचारित करने का। इस घटना पर अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्वतः संज्ञान लिया है और राज्य शासन से इस मामले में 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा है।
दरअसल, शहर के कुछ रसूखदार युवकों ने हाल ही में एक लग्जरी वाहन की खरीददारी के उपलक्ष्य में अपने साथियों के साथ जुलूस की शक्ल में राष्ट्रीय राजमार्ग-130 को कुछ देर के लिए पूरी तरह अवरुद्ध कर दिया। यह सब कोनी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है। बताया जा रहा है कि फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर और ड्रोन कैमरे की मदद से इस पूरे घटनाक्रम की विशेष शूटिंग भी कराई गई, जिसे बाद में सार्वजनिक मंचों पर साझा किया गया। इस दौरान आम नागरिकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा और वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।
इस पूरे मामले ने तूल तब पकड़ा जब घटना का दृश्य सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया। हालांकि वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने मामूली चालानी कार्रवाई करते हुए सात लग्जरी कारों पर 2000-2000 रुपए का जुर्माना लगाया। बाद में एक और वाहन पर दंड लगाया गया। लेकिन न ही किसी वाहन को जब्त किया गया और न ही मोटर व्हीकल एक्ट की गंभीर धाराएं लगाई गईं।
इस संबंध में पुलिस द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट में सिर्फ चालान की बात कही गई और आरोपियों के नाम अथवा वाहन नंबर सार्वजनिक नहीं किए गए। ऐसे में पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठने लगे। आम जनता ने सोशल मीडिया पर पुलिस की इस कार्रवाई को रसूख के आगे नतमस्तक होना करार दिया।
हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को कॉज लिस्ट में शामिल किया और लंच ब्रेक से पहले चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में सुनवाई की गई। बेंच ने राज्य सरकार से पूछा है कि आखिर क्यों इन वाहनों को जब्त नहीं किया गया और क्यों मोटर व्हीकल एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई नहीं की गई? बेंच ने स्पष्ट किया कि जब आम मामलों में गाड़ियों को जब्त कर थाने में खड़ा कर दिया जाता है, तो इस मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर नाराजगी जताई कि महंगी गाड़ियों के मालिकों के साथ अलग तरह का व्यवहार क्यों किया गया। बेंच ने कहा कि कानून सबके लिए बराबर है, और इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि 10 दिनों के भीतर विस्तार से यह बताया जाए कि इस मामले में अब तक क्या कार्रवाई की गई है और यदि नहीं की गई तो क्यों नहीं?
इस प्रकरण ने प्रशासनिक ढांचे की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। आमजन में यह संदेश गया है कि यदि किसी के पास पैसा और पहचान है तो वह नियमों को ताक पर रख सकता है और प्रशासन केवल दिखावे की कार्रवाई करेगा।
यह मामला अब न्यायिक दृष्टि से राज्य शासन के लिए एक परीक्षा बन गया है। अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि शासन और प्रशासन इस प्रकार के मामलों में कितनी गंभीरता दिखाते हैं और क्या वास्तव में कानून का पालन कराने में निष्पक्ष हैं।