छत्तीसगढ़ ने पेंशन घोटाले की गलती पकड़ी, 1685 करोड़ की वसूली: तकनीक और डेटा का बड़ा असर


 

छत्तीसगढ़ में वर्षों पुरानी एक प्रशासनिक चूक को सुधारकर राज्य सरकार ने 1685 करोड़ रुपए की बड़ी राशि मध्यप्रदेश से वसूल की है। यह मामला उन कर्मचारियों से जुड़ा है, जो 2000 में मध्यप्रदेश से विभाजन के समय छत्तीसगढ़ आए थे। इन कर्मचारियों की पेंशन को लेकर दोनों राज्यों के बीच तय हुआ था कि उनकी सेवा के वर्षों के अनुसार पेंशन का भार साझा किया जाएगा। परंतु, इस व्यवस्था के बावजूद मध्यप्रदेश अपने हिस्से की राशि नहीं भेज रहा था, और यह गलती वर्षों तक किसी की नजर में नहीं आई।

क्या है मामला?

साल 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना। तब तय हुआ था कि जो कर्मचारी छत्तीसगढ़ में कार्यरत हुए, उनकी पेंशन का भुगतान उनकी सेवा अवधि के आधार पर किया जाएगा। यदि कोई कर्मचारी 30 वर्षों की सेवा में से 20 साल मध्यप्रदेश और 10 साल छत्तीसगढ़ में रहा, तो उसकी पेंशन का 73.38% हिस्सा मध्यप्रदेश और शेष 26.62% हिस्सा छत्तीसगढ़ देगा।

बैंकों को यह व्यवस्था लागू करनी थी और अनुपात के अनुसार दोनों राज्यों से राशि लेकर कर्मचारियों को पेंशन देनी थी। परंतु, डिजिटल रिकॉर्ड्स की कमी और सिस्टम की खामियों के चलते छत्तीसगढ़ सरकार ही पूरी पेंशन राशि बैंकों को भेजती रही और मध्यप्रदेश से कोई अंशदान नहीं आया।

गलती कैसे पकड़ी गई?

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने भाजपा सरकार बनने के बाद पेंशन संचालनालय की समीक्षा की और रिकॉर्ड्स को डिजिटलाइज करने के निर्देश दिए। इस प्रक्रिया के दौरान, विभागीय जांच में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि मध्यप्रदेश तो पेंशन का हिस्सा दे ही नहीं रहा है।

जैसे ही यह गलती सामने आई, छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश को पत्र लिखकर 2024-25 के लिए 1685 करोड़ रुपए की मांग की, जिसे हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने जमा किया।

डेटा तकनीक से कैसे हुआ सुधार?

पेंशन संचालनालय के संचालक रितेश अग्रवाल के अनुसार, इस गलती को पकड़ने में चार महीने लगे। 1.4 लाख से अधिक पुराने पीपीओ (पेंशन भुगतान आदेश) को स्कैन कर डिजिटाइज किया गया। ये रिकॉर्ड विभिन्न जिलों के कोषालयों और बैंकों के अभिलेखों में बिखरे हुए थे।

एआई तकनीक की मदद से इन रिकॉर्ड्स को एकीकृत किया गया और दोनों राज्यों के बीच निर्धारित पेंशन अनुपात के आधार पर ट्रांजेक्शन का विश्लेषण किया गया। फिर संशोधित खाता-बही तैयार की गई, जिसे महालेखाकार कार्यालय ने सत्यापित किया।

अब हर महीने लगभग 150 से 200 करोड़ रुपए की बचत छत्तीसगढ़ को होगी। अप्रैल से जून 2025 तक के तीन महीनों में ही राज्य को 600 करोड़ की बचत हो चुकी है।

भविष्य में और कितनी वसूली संभव?

सरकारी सूत्रों के अनुसार, पुराने रिकॉर्ड्स की जांच जारी है। संभावना है कि मध्यप्रदेश सरकार से लगभग 25,000 करोड़ रुपए की देनदारी निकल सकती है, जिसे आने वाले वर्षों में वसूल किया जा सकता है।

एक उदाहरण से समझिए

रामप्रकाश नामक कर्मचारी ने 30 साल की सेवा में से 20 साल मध्यप्रदेश और 10 साल छत्तीसगढ़ में नौकरी की। उनकी पेंशन 30,000 रुपए निर्धारित हुई, जिसमें से 21,996 रुपए मध्यप्रदेश और 8,004 रुपए छत्तीसगढ़ को देने थे। परंतु बैंक को पूरी राशि छत्तीसगढ़ सरकार देती रही और मप्र से कोई अंशदान नहीं आया।

अब क्या बदलेगा?

अब व्यवस्था को पारदर्शी बना दिया गया है। बैंकों को हर महीने पेंशन भुगतान के अनुपात की डिमांड शीट भेजी जाती है। मध्यप्रदेश सरकार उस अनुपात के अनुसार छत्तीसगढ़ कोष में पैसा जमा करती है।

वित्त मंत्री का बयान

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने कहा, “1685 करोड़ रुपए की वापसी यह सिद्ध करती है कि इच्छाशक्ति और तकनीक के बल पर इतिहास को भी बदला जा सकता है। यह छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को स्थायित्व देने वाला कदम है।”

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