सांकरा गांव में 17 वर्षीय छात्र ने मोबाइल नहीं मिलने पर की आत्महत्या, परिजन सदमे में परिवार ने फसल बेचने के बाद मोबाइल देने का दिया था भरोसा, बेटे की जिद ने ले ली जान


 

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से एक बेहद दर्दनाक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है। सिहावा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सांकरा गांव में एक 17 वर्षीय छात्र प्रियांशु साहू ने मोबाइल नहीं मिलने पर आत्महत्या कर ली। यह घटना रविवार शाम की बताई जा रही है, जिसने पूरे गांव और आसपास के क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया है।

प्रियांशु 11वीं कक्षा का छात्र था और इन दिनों अपने परिजनों से नया मोबाइल फोन दिलाने की जिद कर रहा था। बताया जा रहा है कि छात्र का मोबाइल फोन खराब हो गया था, जिस कारण वह नया फोन खरीदने की मांग कर रहा था। परिजनों ने उसे समझाया कि इस समय परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर है और खेती में ही सारा पैसा खर्च हो चुका है। उन्होंने आश्वासन दिया कि फसल बेचने के बाद जैसे ही पैसे आएंगे, वे नया मोबाइल जरूर दिलाएंगे।

लेकिन यह बात प्रियांशु को नागवार गुजरी। नाराज होकर उसने घर के कमरे में जाकर पंखे से साड़ी का फंदा बनाकर फांसी लगा ली। काफी देर तक जब वह बाहर नहीं आया, तो परिजनों ने दरवाजा खटखटाया। कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर दरवाजा तोड़ा गया, तो देखा कि प्रियांशु फांसी के फंदे से झूल रहा है। परिजन तुरंत उसे नगरी सिविल अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

घटना की जानकारी मिलते ही सिहावा पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। एसडीओपी शैलेन्द्र पांडेय ने बताया कि प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि छात्र ने मोबाइल नहीं मिलने की वजह से यह आत्मघाती कदम उठाया है। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और आगे की जांच जारी है।

इस घटना ने एक बार फिर समाज में मोबाइल की बढ़ती जरूरत और किशोरों में मानसिक दबाव की स्थिति को उजागर कर दिया है। एक ओर जहां स्मार्टफोन आधुनिक शिक्षा और संवाद का जरिया बन गए हैं, वहीं दूसरी ओर इनकी लत और महत्व किशोरों की मानसिकता पर गहरा असर डाल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि आज के दौर में बच्चों के साथ भावनात्मक संवाद बेहद जरूरी है, जिससे वे किसी भी असामान्य कदम को उठाने से पहले सोचें और समझें।

गांव में शोक की लहर है। प्रियांशु पढ़ाई में अच्छा था और खेलकूद में भी सक्रिय रहता था। ग्रामीणों और शिक्षकों का कहना है कि उसे इस तरह के कदम की किसी ने उम्मीद नहीं की थी। इस घटना से अन्य परिवारों को भी सीख लेनी चाहिए कि बच्चों की मानसिक स्थिति पर ध्यान देना जरूरी है। सिर्फ आर्थिक जरूरतें पूरी करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके भीतर उठ रहे सवालों और भावनाओं को समझना भी उतना ही जरूरी है।

प्रशासन और सामाजिक संगठनों को अब इस दिशा में गंभीरता से काम करने की जरूरत है, जिससे किशोरों में आत्महत्या जैसे घातक विचार जन्म ही न लें।

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