बिलासपुर: अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी में भारी अनियमितताएं, उच्च शिक्षा विभाग ने गठित की जांच कमेटी


 

बिलासपुर की प्रतिष्ठित अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में घिर गई है। विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक स्तर पर हुई कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। आरक्षण रोस्टर में छेड़छाड़ से लेकर बगैर टेंडर के सौंदर्यीकरण कार्य, फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्ति और लाखों रुपये के अग्रिम भुगतान जैसे मामलों ने विश्वविद्यालय की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बिना टेंडर के खर्च किए गए लाखों रुपये

विश्वविद्यालय में गार्डन के रिनोवेशन और तालाब के सौंदर्यीकरण का कार्य बिना किसी निविदा प्रक्रिया के संपन्न कराया गया। यह कार्य लाखों रुपए की लागत से हुआ, जिसे बिना नियमों की परवाह किए हुए संपादित किया गया। नियमानुसार, किसी भी सरकारी संस्था में निर्धारित राशि से अधिक के कार्यों के लिए टेंडर प्रक्रिया अनिवार्य होती है, लेकिन यहां पूरी प्रक्रिया को दरकिनार कर मनमानी की गई।

नियुक्तियों में आरक्षण रोस्टर से छेड़छाड़

शैक्षणिक पदों पर की गई भर्तियों में आरक्षण रोस्टर में छेड़छाड़ के गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों को ताक पर रखकर अपने चहेतों को नियुक्तियां दीं। आरक्षित वर्ग के लिए तय पदों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को नियुक्त कर दिया गया, जिससे न केवल सामाजिक न्याय प्रभावित हुआ, बल्कि व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया।

कुलपति के निजी सहायक की फर्जी डिग्री

कुलपति के निजी सहायक उपेन चंद्राकर की नियुक्ति पर भी सवाल उठे हैं। आरोप है कि उन्होंने एक गैर मान्यता प्राप्त संस्थान से ऑफिस मैनेजमेंट का फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर उनकी नियुक्ति हुई। खास बात यह है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पहले ही इस संस्थान को फर्जी घोषित कर दिया है, इसके बावजूद उनकी नियुक्ति की गई।

लाइब्रेरियन की उम्र पर भी विवाद

यूजीसी के दिशा-निर्देशों के विपरीत एक अधिक उम्र की महिला को लाइब्रेरियन के पद पर नियुक्त किया गया है। यूजीसी नियमों के अनुसार, शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति के लिए उम्र की एक अधिकतम सीमा तय होती है, लेकिन इस नियम की अनदेखी कर नियुक्ति की गई।

दैनिक वेतनभोगी को लाखों का अग्रिम भुगतान

पूर्व छात्र सूरज राजपूत ने एक और गंभीर आरोप लगाया है। उनके अनुसार, विश्वविद्यालय प्रशासन ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी मनीष सक्सेना को लाखों रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया। इसके साथ ही उन्हें विश्वविद्यालय के आयोजनों में खानपान व्यवस्था का कार्य भी सौंपा गया, जहां कमीशनखोरी के आरोप भी सामने आए हैं।

जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित

छात्रों और सामाजिक संगठनों की लगातार शिकायतों के बाद उच्च शिक्षा आयुक्त ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पांच सदस्यीय जांच समिति गठित की है। इस समिति को निर्देश दिए गए हैं कि वे विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक भर्तियों, वित्तीय लेन-देन, टेंडर प्रक्रियाओं और प्रशासनिक कामकाज में हुई अनियमितताओं की जांच कर, दस्तावेजों के साथ विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

जल्द सौंपेगी रिपोर्ट

माना जा रहा है कि यह कमेटी जल्द ही विश्वविद्यालय का निरीक्षण कर, संबंधित पक्षों से पूछताछ करेगी और प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर अपनी रिपोर्ट उच्च शिक्षा विभाग को सौंपेगी। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। अगर आरोप सही पाए गए, तो विश्वविद्यालय प्रशासन पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना है।

यह पूरा मामला उच्च शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में यदि इस प्रकार की अनियमितताएं सामने आती हैं, तो यह न केवल छात्रों का भविष्य प्रभावित करता है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की साख को भी गहरी चोट पहुंचाता है। अब सभी की निगाहें जांच कमेटी की रिपोर्ट पर टिकी हैं।

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