राज्य में लंबे समय से चर्चा में रहे बहुचर्चित शराब घोटाले के मामले में सोमवार को एक अहम मोड़ सामने आया। हाई कोर्ट ने इस घोटाले में फंसे आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई के बाद यह निर्णय लिया गया।
इस पूरे प्रकरण में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने प्रदेश के कई जिलों में पदस्थ रहे तत्कालीन आबकारी अधिकारियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया था। जांच में सामने आया कि विभागीय मिलीभगत से बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं। इसमें ओवर बिलिंग, नकली बारकोड का उपयोग और डमी कंपनियों के माध्यम से करोड़ों रुपये की अवैध वसूली की गई। इस खुलासे के बाद से ही यह मामला राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में सुर्खियों में बना हुआ है।
20 अगस्त तक पेश होने का आदेश
इस मामले में कोर्ट ने पहले ही आदेश जारी किया था कि आरोपी अधिकारियों को 20 अगस्त तक अदालत में पेश होना होगा। कुल 29 अधिकारी इस घोटाले में आरोपी बनाए गए हैं। कोर्ट ने इन्हें स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि वे तय तारीख पर पेश नहीं होते हैं तो उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया जाएगा।
यह आदेश इसलिए भी अहम है क्योंकि अभी तक जांच एजेंसी ने किसी भी अधिकारी को गिरफ्तार नहीं किया है। ईओडब्ल्यू का कहना है कि अधिकारियों ने जांच में पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया था। इसी कारण एजेंसी ने गिरफ्तारी की बजाय सीधे चार्जशीट पेश करने का निर्णय लिया। हालांकि, अब कोर्ट के रुख को देखते हुए अधिकारियों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
ईडी की सख्ती भी तय
इस घोटाले में सिर्फ ईओडब्ल्यू ही नहीं, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी सक्रिय है। ईडी ने पहले से ही कई दस्तावेज अपने कब्जे में लिए हैं और जल्द ही कुछ और गिरफ्तारियां होने की संभावना जताई जा रही है। सूत्रों का कहना है कि ईडी की अगली कार्रवाई में न केवल अधिकारी बल्कि उनसे जुड़े कारोबारी भी जांच के घेरे में आ सकते हैं।
मिलीभगत से बना जाल
जांच एजेंसियों का आरोप है कि इस पूरे मामले में विभागीय स्तर पर मिलीभगत हुई। नकली बारकोड और डमी कंपनियों के जरिए शराब की आपूर्ति और बिक्री में हेरफेर कर सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया गया। इसके बदले में अधिकारियों और संबंधित कंपनियों ने अवैध कमाई की। यह सब सुनियोजित तरीके से वर्षों तक चलता रहा।
कोर्ट का सख्त रुख
हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करते हुए साफ संकेत दिया है कि इस तरह के गंभीर आर्थिक अपराधों में नरमी की कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत का मानना है कि आरोपी अधिकारियों को जांच में सहयोग करना चाहिए और न्यायिक प्रक्रिया से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
राजनीतिक हलचल
इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। विपक्ष लगातार सरकार पर सवाल उठा रहा है कि इतने बड़े स्तर पर घोटाला कैसे हुआ और इतने लंबे समय तक विभागीय निगरानी के बावजूद इसकी परतें क्यों नहीं खुलीं। वहीं, सरकार का कहना है कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से आगे बढ़ रही है।
आगे की राह
अब सभी की निगाहें 20 अगस्त पर टिकी हैं, जब 29 अधिकारियों को कोर्ट में पेश होना है। यदि वे हाजिर नहीं होते, तो उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी होगा, जिससे उनकी कानूनी मुश्किलें और बढ़ेंगी। साथ ही, ईडी की कार्रवाई से इस मामले में और बड़े नाम सामने आने की संभावना है।
यह घोटाला राज्य की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आने वाले दिनों में इस केस से जुड़े नए खुलासे प्रदेश की राजनीति और प्रशासन दोनों को हिला सकते हैं।