बिलासपुर की NIA कोर्ट ने चर्चित मानव तस्करी केस में गिरफ्तार कैथोलिक नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को जमानत दे दी। यह मामला 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन से शुरू हुआ था, जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने तीन आदिवासी युवतियों, एक युवक और दो मिशनरी सिस्टर्स को रोका। आरोप था कि ये लोग युवतियों को आगरा ले जाकर उनका धर्मांतरण और शोषण करने की साजिश रच रहे थे।
बजरंग दल ने आरोप लगाते हुए GRP थाना दुर्ग में ननों पर मानव तस्करी और धर्मांतरण का केस दर्ज कराया था। इसके बाद दोनों ननों को गिरफ्तार कर 9 दिन तक जेल में रखा गया। अब NIA कोर्ट ने सबूतों की कमी और पीड़िता के बयान को आधार मानते हुए जमानत दी है।
संसद में उठा मामला, विपक्ष हमलावर
इस गिरफ्तारी को लेकर केरल से लेकर दिल्ली तक सियासत गर्म हो गई। राज्यसभा और लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने इस कार्रवाई को "धार्मिक असहिष्णुता" और "राजनीतिक बदले की कार्रवाई" करार दिया। राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि “यह न्याय नहीं, आरएसएस-बीजेपी का भीड़तंत्र है।” प्रियंका गांधी ने भी गिरफ्तारी को "कानूनी आधारहीन" बताया।
केरल के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल 29 जुलाई को दुर्ग जेल पहुंचा और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाकात कर ननों की रिहाई की मांग की। केरल के सीएम कॉनराड संगमा ने भी केंद्र सरकार से फर्जी केस रद्द करने की अपील की।
कोर्ट में जमानत के पीछे क्या तर्क रहे?
दुर्ग कोर्ट ने पहले ननों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन बाद में मामला NIA कोर्ट में पहुंचा। वकील आशीष शुक्ला के अनुसार, NIA कोर्ट ने पाया कि पुलिस के पास ठोस सबूत नहीं हैं। साथ ही एक पीड़िता कमलेश्वरी ने मीडिया के सामने आकर बयान दिया कि ननों ने उसके साथ कोई गलत व्यवहार नहीं किया। उसने बताया कि जबरन उससे बयान बदलवाया गया और GRP थाने में मारपीट की गई।
राजनीतिक और सामाजिक असर
घटना के बाद छत्तीसगढ़, केरल और अन्य राज्यों में ईसाई संगठनों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए। कोच्चि, एर्नाकुलम और अंगामाली जैसे शहरों में चर्च, नन और आम नागरिकों ने गिरफ्तारी को "संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन" कहा। वहीं दुर्ग, रायपुर, रायगढ़, कोरबा और जगदलपुर में भी घटनाक्रम को लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए।
मानव तस्करी कानून के प्रावधान
भारत में मानव तस्करी एक गंभीर गैर-जमानती अपराध है। खासकर जब मामला महिलाओं और बच्चों से जुड़ा हो, तो बिना देर गिरफ्तारी अनिवार्य होती है। इसके तहत 10 साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। FIR में BNS धारा 143 और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 4 के तहत केस दर्ज हुआ था।
भविष्य की राह
NIA कोर्ट से मिली जमानत के बावजूद ननों के खिलाफ जांच जारी रहेगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे चलकर क्या यह मामला कोर्ट में टिक पाएगा या राजनीतिक और सामाजिक दबाव में कमजोर पड़ जाएगा। बहरहाल, इस केस ने एक बार फिर धार्मिक स्वतंत्रता, आदिवासी अधिकारों और कानून के दुरुपयोग पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी है।