घटना की सूचना मिलने के बाद स्थानीय भाजपा नेता सरजू मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचित किया। मानिकपुर चौकी प्रभारी सुदामा पाटले ने अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचकर शव को कब्जे में लिया और मर्ग कायम कर लिया है। पुलिस ने परिजनों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए हैं और आत्महत्या के कारणों की जांच शुरू कर दी है।
पारिवारिक टूटन ने बदली ज़िंदगी
पुलिस जांच में सामने आया है कि राकेश की जिंदगी पिछले 12 सालों से संघर्षों से भरी हुई थी। उसकी पत्नी ने करीब 12 वर्ष पहले उसे छोड़ दिया था और दूसरी शादी कर ली थी। तब से राकेश अपनी छोटी बेटी की परवरिश अकेले ही कर रहा था। उसकी बेटी वर्तमान में कक्षा नौवीं की छात्रा है।
परिजनों और पड़ोसियों ने बताया कि पत्नी के जाने के बाद से राकेश अंदर से टूट चुका था। हालांकि वह अपनी बेटी को बेहतर जीवन देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा था। वह पेशे से पेंटर था और बचपन से ही पेंटिंग का काम करता आ रहा था। उसकी कला की तारीफ कई लोग करते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी।
आर्थिक तंगी बनी परेशानी का कारण
राकेश की आर्थिक स्थिति भी अत्यंत कमजोर थी। नियमित इलाज ना मिल पाने और अकेलेपन के कारण वह लंबे समय से मानसिक तनाव में जी रहा था। उसकी कमाई बहुत सीमित थी और उसमें से भी अधिकतर राशि बेटी की पढ़ाई और घर खर्च में चली जाती थी।
स्थानीय लोगों के अनुसार, राकेश ने कई बार अपने मानसिक तनाव और चिंता को दोस्तों और पड़ोसियों से साझा किया था, लेकिन मदद की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हो सका। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि यदि उसे समय पर काउंसलिंग या आर्थिक सहयोग मिला होता, तो शायद यह दुखद घटना टल सकती थी।
पुलिस कर रही गहन जांच
फिलहाल पुलिस मामले की गंभीरता से जांच कर रही है। शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया है। परिजनों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं और घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं।
मानिकपुर चौकी प्रभारी सुदामा पाटले ने बताया कि फिलहाल मामले को आत्महत्या के रूप में दर्ज किया गया है, लेकिन सभी पहलुओं की जांच की जा रही है। यह भी देखा जाएगा कि क्या किसी ने राकेश को आत्महत्या के लिए उकसाया या दबाव डाला।
समाज के लिए चेतावनी
यह घटना समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना किसी की जान ले सकता है। एक मेहनती कलाकार, जो समाज में अपने हुनर से पहचान बना चुका था, अंततः अकेलेपन, टूटे रिश्तों और आर्थिक तंगी से हार गया।
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित किया है कि हमें अपने आसपास के लोगों के मानसिक हालात पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए, जितना उनकी शारीरिक समस्याओं पर देते हैं। वक्त रहते मानसिक सहयोग, बातचीत और मदद किसी की जान बचा सकती है।
अंतिम संस्कार और सहायता की पहल
स्थानीय समाजसेवियों और वार्ड पार्षदों ने राकेश की बेटी की मदद के लिए प्रशासन से अपील की है। कुछ लोगों ने मिलकर आर्थिक सहायता एकत्र करना शुरू कर दिया है, ताकि बेटी की पढ़ाई और भरण-पोषण में कोई बाधा न आए।
राकेश की अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और सभी की आंखें नम थीं। उन्होंने एक मेहनती पिता, एक कलाकार और एक संघर्षशील इंसान को अंतिम विदाई दी।