साइबर ठगों का नया जाल: ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर 49 लाख की ठगी, तीन गिरफ्तार

साइबर ठगों का नया जाल: ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर 49 लाख की ठगी, तीन गिरफ्तार

भिलाई। डिजिटल ठगों का एक खतरनाक जाल भिलाई में बेनकाब हुआ है। स्टील प्लांट के एक अधिकारी को झूठे अपराध में फंसाने और डिजिटल अरेस्ट का डर दिखाकर 49 लाख रुपए ठग लिए गए। पुलिस की तत्परता से तीन आरोपियों को मुंबई और कोलकाता से गिरफ्तार किया गया है।



कैसे हुआ ‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड?

पीड़ित इंद्रप्रकाश कश्यप, जो पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित स्टील प्लांट में अधिकारी हैं और भिलाई में उनका निवास है, को एक फोन कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) का अधिकारी बताया और दावा किया कि उनके आधार कार्ड का इस्तेमाल अपराधों में किया गया है।

डर और कानूनी कार्रवाई के भय से इंद्रप्रकाश ने आरोपियों द्वारा बताए गए बैंक खातों में 49 लाख 1,196 रुपए ट्रांसफर कर दिए। जब उन्हें ठगी का एहसास हुआ, तो उन्होंने तुरंत भिलाई नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई।

दूसरी ठगी: एप रेटिंग के नाम पर 3.25 लाख की ठगी

 अन्य मामले में, साइबर ठगों ने एक व्यक्ति को एप में रेटिंग बढ़ाने के नाम पर सवा 3 लाख रुपए का चूना लगाया। शुरुआत में ठगों ने कुछ पैसे देकर विश्वास जीता और फिर अधिक कमाई का लालच देकर बड़े टास्क दिए। जब पीड़ित ने निवेश किया, तो ठगों ने टैक्स के नाम पर और पैसे मांगे, जिससे कुल ठगी की राशि 3.25 लाख तक पहुंच गई।

कैसे पुलिस ने खोला मामला?

दुर्ग पुलिस ने सबसे पहले यह पता लगाया कि ठगी की रकम किन खातों में ट्रांसफर हुई। जांच में सामने आया कि यह राशि स्मृति नगर निवासी सुखविंदर सिंह के खाते में गई थी। पूछताछ में सुखविंदर ने झारखंड के दो अन्य आरोपियों, उपेंद्र और नरेंद्र का नाम बताया।

कोलकाता और मुंबई से गिरफ्तारियां

इनपुट्स के आधार पर दुर्ग पुलिस ने कोलकाता से उपेंद्र और नरेंद्र को पकड़ा, जो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के निवासी हैं। पूछताछ के दौरान, उन्होंने महाराष्ट्र के ठाणे में रहने वाले सद्दाम मुल्ला का नाम उजागर किया। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए उसे भी गिरफ्तार कर लिया।

कैसे काम करता था ठगों का नेटवर्क?

गिरोह साइबर अपराध के जरिए ठगी की रकम को अलग-अलग खातों में सर्कुलेट करता था।

पहले रकम राजस्थान के कुछ खातों में ट्रांसफर की गई, फिर वहां से अन्य खातों में।

नरेंद्र, उपेंद्र और सुखबीर सिंह जैसे आरोपी ठगों को ‘म्यूल अकाउंट’ उपलब्ध कराते थे, जिनके जरिए पैसों का लेन-देन होता था।

इस नेटवर्क के जरिए रकम ट्रांसफर करने पर उन्हें 3% कमीशन मिलता था।

मुख्य साजिशकर्ता अब भी फरार!

पुलिस इस मामले में पहले ही तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है, लेकिन गिरोह का मास्टरमाइंड अब भी फरार है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है और जल्द ही इस पूरे गिरोह का पर्दाफाश हो सकता है।

सावधन धान रहें, सतर्क रहें!

साइबर ठगी के ऐसे मामलों से बचने के लिए अनजान कॉल्स पर भरोसा न करें। सरकारी अधिकारी बनकर आने वाले किसी भी संदिग्ध कॉल की तुरंत पुलिस में शिकायत करें। जागरूकता ही सुरक्षा की सबसे बड़ी ढाल है!



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