"झीरम घाटी का जख्म: आज भी सीने में धंसी है नक्सली गोली, चश्मदीद ने सुनाई उस दिन की दहशत"


 

रायपुर, 24 मई 2025
12 साल पहले बस्तर की झीरम घाटी में हुआ नक्सली हमला आज भी उन घायलों और पीड़ितों के ज़ेहन में ताजा है, जिन्होंने इस खूनी साजिश को अपनी आंखों से देखा और झेला। 25 मई 2013 को हुए इस नृशंस हमले में कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता मारे गए थे। रायपुर निवासी कांग्रेस नेता शिव ठाकुर, जो इस हमले में गंभीर रूप से घायल हुए थे, आज भी अपने शरीर में नक्सलियों की चलाई गोली के साथ जी रहे हैं।

"यह सामान्य नक्सली हमला नहीं था, बल्कि सुपारी किलिंग थी": शिव ठाकुर

दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में शिव ठाकुर ने कहा कि झीरम घाटी हमला कोई साधारण नक्सली हमला नहीं था, बल्कि यह एक सुनियोजित "सुपारी किलिंग" थी। उन्होंने बताया कि हमलावर नक्सली लगातार वॉकी-टॉकी पर निर्देश ले रहे थे और कुछ खास नेताओं को खोज-खोज कर निशाना बना रहे थे। ठाकुर के अनुसार, यह संकेत करता है कि हमले के पीछे कोई बड़ा मास्टरमाइंड था, जिसकी पहचान आज तक नहीं हो पाई है।

हमले की भयावहता: “नाम पूछ-पूछकर मारे जा रहे थे नेता”

शिव ठाकुर ने बताया कि हमलावर नक्सली बार-बार नेताओं के नाम पुकारते थे – “नंदकुमार पटेल कहां है? महेंद्र कर्मा कहां है?” अगर जवाब नहीं मिलता तो गोलियां चला देते। ठाकुर खुद भी इस हमले में पीठ पर गोली लगने से घायल हुए थे और आज भी उनके शरीर में 7 मेटल पार्टिकल मौजूद हैं।

NIA और SIT जांच पर सवाल

ठाकुर ने कहा कि घटना के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उनसे सिर्फ अस्पताल में नाम और पता लिया, लेकिन इसके बाद कोई पूछताछ नहीं की। उन्होंने आरोप लगाया कि एनआईए ने बिना पूरी जांच के क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एसआईटी गठित की, तब कुछ प्रगति होने की उम्मीद जगी, लेकिन कोर्ट में NIA ने स्टे लगवा दिया, जिससे जांच अधर में रह गई।

“बसवा राजू की मौत के बाद भी सच क्यों नहीं आया सामने?”

हाल ही में नक्सली लीडर बसवा राजू की मौत की खबरों के बाद शिव ठाकुर ने सवाल उठाया कि अगर वह झीरम कांड में शामिल था, तो उसके साथियों से पूछताछ कर सच्चाई क्यों नहीं उजागर की गई? उन्होंने मांग की कि झीरम घाटी में हुई साजिश की पूरी सच्चाई जनता के सामने लाई जाए।

“नक्सलियों के पास लैपटॉप और वायरलेस थे”

ठाकुर ने दावा किया कि नक्सलियों के पास अत्याधुनिक वायरलेस सेट और लैपटॉप थे, और वे हर निर्णय अपने बॉस से अनुमति लेकर ले रहे थे। इससे यह साफ है कि यह हमला जमीनी स्तर पर नहीं, बल्कि उच्च स्तर पर रची गई साजिश थी।

घटना का विवरण: “तीन टीमों में बंटे थे नक्सली”

शिव ठाकुर ने बताया कि लगभग 200 से 250 नक्सली तीन टीमों में बंटकर हमला कर रहे थे। एक टीम हमलावर थी, दूसरी घायलों की जांच कर रही थी और तीसरी नेताओं की पहचान कर रही थी। महेंद्र कर्मा ने जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण किया, फिर भी नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी।

“केंद्र की फोर्स कहां थी?” – नक्सलियों का ताना

ठाकुर ने बताया कि नक्सली उन पर तंज कसते हुए कह रहे थे – “केंद्र सरकार की फोर्स कहां है जो तुम्हें बचाने आए?” यह वाक्य साफ तौर पर इस बात का संकेत देता है कि हमला सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी पर नहीं बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर था।

“हम अब भी पीड़ित हैं, न्याय कब मिलेगा?”

शिव ठाकुर का कहना है कि 12 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला है। वे सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो, दोषियों की पहचान की जाए और जनता को सच बताया जाए।


झीरम घाटी हमला: कुछ अहम तथ्य

  • तारीख: 25 मई 2013

  • स्थान: झीरम घाटी, बस्तर, छत्तीसगढ़

  • हमलावर: 200 से अधिक नक्सली

  • मृतक: 29 लोग, जिनमें वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल शामिल

  • जांच एजेंसियां: NIA, SIT (रुकी हुई जांच)

  • अब तक खुलासा: कोई मुख्य साजिशकर्ता सामने नहीं आया

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