रायपुर।
25 जून 1975 को देशभर में जैसे सन्नाटा छा गया था। रेडियो पर सुबह-सुबह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज गूंजी—“राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है, घबराने की कोई बात नहीं है।” पर डर तो उसी पल से शुरू हो गया था। रायपुर की सड़कों पर 15 साल का बच्चा "इंदिरा गांधी इस्तीफा दो" के नारे लगाते दौड़ रहा था। वो बच्चा था जयंत तापस—छत्तीसगढ़ का सबसे युवा मीसाबंदी।
जयंत को पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया। सिर्फ वही नहीं, रायपुर में सैकड़ों लोगों को सरकार के विरोध के चलते जेल में ठूंसा गया। पुलिस का दमन इतना जबरदस्त था कि रायपुर की सेंट्रल जेल में पहली बार अंदर ही लाठीचार्ज हुआ। कैदियों का खाना फेंक दिया गया, पीटा गया, किसी के हाथ टूटे, तो किसी के पैर।
संघ से जुड़े परिवार का बेटा, जिसने नारा लगाया और जेल गया
जयंत तापस का परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा था। जब 26 जून को आपातकाल की घोषणा हुई, तब जयंत महज साढ़े 15 साल के थे। उन्होंने हाथों में पोस्टर लिए सरकार के खिलाफ पैदल मार्च किया और पुलिस ने उन्हें बैजनाथपारा के पास से उठा लिया। एक रात सिटी कोतवाली में रखने के बाद सीधे जेल भेज दिया गया।
35 दिन जेल में, डर और यातना
जयंत बताते हैं कि जेल में पहले दिन से ही डर था—कितने दिन रहना होगा, क्या होगा, कुछ समझ नहीं आ रहा था। जेल में एक दिन कैदियों को खाना ही नहीं मिला, उल्टा पिटाई हुई। किसी ने खाना नहीं खाया। जयंत को 35 दिन बाद अदालत ने उनकी उम्र देखते हुए रिहा करने का आदेश दिया।
लाठीचार्ज की वो रात
डंगनिया निवासी सुहास देशपांडे आज भी उस भयावह मंजर को नहीं भूल पाए हैं। 1 जनवरी को रायपुर जेल में पहली बार अंदर ही क्रूर लाठीचार्ज हुआ था। पुलिस ने उन सभी को बेरहमी से पीटा जो सिर्फ विरोध कर रहे थे। भिलाई के कल्याण सिंह के दोनों पैर तोड़ दिए गए, प्रभाकर राव देवस्थले का सिर फट गया।
भेष बदलकर आते थे नेता
मीसाबंदियों से मिलने और आंदोलन को जिंदा रखने के लिए संघ के नेता भेष बदलकर जेल तक आते थे। कोई सुनार बनकर, कोई व्यापारी की शक्ल में। बिलासपुर के केशवलाल गोरे ‘गोरेलाल सोनी’ बन गए थे। ये नेता जेल में कैद कार्यकर्ताओं को जानकारी और हौसला देने आते थे।
जयंत के पिता भी बने थे मीसाबंदी
जयंत के पिता दिनकर पुरुषोत्तम तापस को भी 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद जेल भेजा गया था। तब वो भी 15 साल के ही थे। जयंत ने बताया कि उन्होंने अपने पिता से ही प्रेरणा ली थी और आपातकाल में खुलकर विरोध किया।
इमरजेंसी की वजह और अंत
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। इसी के बाद 25 जून की रात को देश में आपातकाल लागू हुआ। करीब 1 लाख लोगों को मीसा और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत जेल में डाला गया। 21 मार्च 1977 को ये काला अध्याय खत्म हुआ।
अब क्या चाहते हैं मीसाबंदी
सुहास देशपांडे कहते हैं, “हमें पद की चाह नहीं थी, न अब है। लेकिन आने वाली पीढ़ियों को यह जानना जरूरी है कि देश ने क्या-क्या झेला। सरकार को चाहिए कि इसे इतिहास के पाठ्यक्रम में जोड़े। हम इस पर निबंध प्रतियोगिता करवाते हैं, ताकि बच्चों को पता चले कि लोकतंत्र की क्या कीमत होती है।”