महासमुंद जेल में आदिवासी युवक की संदिग्ध मौत: हाईकोर्ट सख्त, दो सप्ताह में मांगा जवाब


 

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला जेल में एक आदिवासी युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने न्यायिक व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। मृतक नीरज भोई की मौत को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इसे हिरासत में मौत का गंभीर मामला मानते हुए राज्य सरकार को दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई जून के अंतिम सप्ताह में निर्धारित की गई है।

क्या है पूरा मामला?

ग्राम पिपरौद निवासी नीरज भोई को 12 अगस्त 2024 को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। गिरफ्तारी के वक्त कराए गए मेडिकल परीक्षण में उसके शरीर पर किसी भी तरह की चोट या निशान नहीं थे। हालांकि, डॉक्टरों ने उसे अवसादग्रस्त (डिप्रेशन से पीड़ित) और शराब का आदी बताया था।

लेकिन 15 अगस्त की सुबह जेल प्रशासन ने उसे गंभीर हालत में महासमुंद के सरकारी अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। प्रारंभ में यह दावा किया गया कि नीरज की मौत नशा छोड़ने के कारण उत्पन्न मानसिक और शारीरिक लक्षणों (विड्राल सिम्पटम्स) के चलते हुई है।

जनहित याचिका में गंभीर आरोप

मृतक के परिजनों और सामाजिक संगठनों की ओर से हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि नीरज को जेल में मानसिक रोगी बताकर अन्य कैदियों से अलग खुले स्थान पर लोहे के गेट से बांधकर छोड़ दिया गया था। उसके इलाज की जगह उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिसके चलते उसकी मौत हुई।

याचिका में कहा गया कि वह अन्य कैदियों पर थूकने और काटने लगा था, जो कि विड्राल सिम्पटम्स का लक्षण हो सकता है, लेकिन जेल प्रशासन ने उचित चिकित्सकीय देखरेख के बजाय अमानवीय व्यवहार किया। साथ ही, मृतक के परिजनों को न्याय दिलाने और दोषियों पर हत्या का मामला दर्ज करने तथा मुआवजे की मांग भी की गई है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोले नए राज

शुरुआती रिपोर्ट में मौत का कारण नशा छोड़ने के लक्षणों को बताया गया था, लेकिन जब घटना की शिकायत पर मजिस्ट्रेट जांच के आदेश हुए और 17 अगस्त को पोस्टमार्टम कराया गया, तब सच्चाई सामने आई। मेडिकल टीम की रिपोर्ट के मुताबिक, नीरज की मौत गला दबाने से हुई थी और उसके शरीर पर कुल 35 चोटों के निशान थे, जिनमें से 8 आंतरिक रूप से गंभीर थीं।

इस रिपोर्ट ने मामले को पूरी तरह से नया मोड़ दे दिया, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह एक पूर्व नियोजित प्रताड़ना और हत्या का मामला है।

जेल प्रशासन की सफाई

जेल में पदस्थ चिकित्सक डॉ. संजय दवे की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीरज को जेल में दाखिल होने के बाद से ही नशे के कारण असामान्य व्यवहार होने लगा था। उसे मानसिक रोग संबंधी दवाएं दी गईं, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इसलिए 15 अगस्त की सुबह उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।

न्यायिक सख्ती और अगली सुनवाई

मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर तत्काल संज्ञान लिया और इसे ‘कस्टोडियल डेथ’ यानी हिरासत में हुई मौत का मामला माना। अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। केस की अगली सुनवाई जून के अंतिम सप्ताह में की जाएगी।

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