रायपुर।
भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना भारतनेट परियोजना फेस-2 में भारी गड़बड़झाले का खुलासा हुआ है। वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ के 5,987 पंचायतों को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ने के उद्देश्य से टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (TPL) को यह कार्य सौंपा गया था। इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने 2155 करोड़ रुपये और राज्य सरकार ने 112 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। चिप्स (CHiPS - छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाइटी) को नोडल एजेंसी बनाया गया था।
टीपीएल को 2023 तक इस कार्य को पूरा करना था, जिसके बदले चिप्स ने उसे लगभग 1600 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। टाटा ने दावा किया कि 5540 पंचायतों में फाइबर लाइन बिछा दी गई है, लेकिन 2024 में की गई जांच में सामने आया कि 200 से भी कम पंचायतों में ही इंटरनेट काम कर रहा है। बाकी जगह नेटवर्क या तो शुरू ही नहीं हुआ या फिर शुरू होते ही बंद हो गया।
टाटा को मिले थे चार काम, सभी में फेल
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फाइबर लाइन बिछाना:
5,987 पंचायतों में फाइबर लाइन बिछानी थी। वास्तविकता: कई जगह लाइनें आधी अधूरी हैं या कट चुकी हैं। -
राउटर लगाना:
हर पंचायत में राउटर लगने थे। वास्तविकता: 30% राउटर खराब हो चुके हैं, कई चालू ही नहीं हुए। -
नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर (NOC) बनाना:
रायपुर में इसका संचालन केंद्र बनना था। वास्तविकता: इंटरनेट ही नहीं चालू हुआ, तो सेंटर निष्क्रिय पड़ा है। -
7 साल तक मरम्मत की जिम्मेदारी:
टाटा को सात साल तक रखरखाव करना था। वास्तविकता: एक भी पंचायत में मरम्मत कार्य नहीं हुआ।
पंचायतों में दिखी बदहाली
दैनिक भास्कर की टीम ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक 50 पंचायतों का 10 दिन तक निरीक्षण किया। अधिकतर पंचायतों में राउटर बंद मिले। अंबिकापुर की लहपटरा पंचायत में फाइबर बंडल बोरे में पड़े थे, UPS जंग खा रहे थे और सिस्टम पर धूल की परत जमी हुई थी। एक कर्मचारी ने बताया, “यह सब इंटरनेट के लिए लगाया गया था, पर कभी चालू ही नहीं हुआ।”
नुकसान का दायरा बड़ा
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जमीन में दबे 1600 करोड़:
बिना उपयोग के केबल, राउटर और उपकरण धूल खा रहे हैं। -
फाइबर की चोरी और नुकसान:
जल जीवन मिशन, बिजली के काम आदि के दौरान केबल काट दी गई। कहीं जानवरों ने तार चबाकर नुकसान पहुंचाया। -
नक्सल क्षेत्रों में भारी असर:
बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बीएसएनएल के 100 से ज्यादा टावर लगाने की योजना थी, लेकिन फाइबर कटने से यह असंभव हो गया है।
टाटा का ठेका रद्द, जमानत जब्त
बार-बार नोटिस देने के बावजूद टाटा ने काम में सुधार नहीं किया। अंततः मई 2025 में चिप्स ने टाटा प्रोजेक्ट्स का ठेका रद्द कर दिया और 167 करोड़ रुपये की जमानत राशि जब्त कर ली। लेकिन इससे पूर्व जो अरबों रुपये बर्बाद हो चुके हैं, उनकी भरपाई कैसे होगी, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
योजना का उद्देश्य और विफलता
इस योजना का मकसद था कि जिन गांवों में निजी कंपनियों की पहुंच नहीं है, वहां भारतनेट के जरिए डिजिटल कनेक्टिविटी दी जाए। पंचायतों को नोडल सेंटर बनाकर स्कूल, अस्पताल, थाना जैसे संस्थानों को इंटरनेट से जोड़ा जाना था, फिर आगे चलकर ग्रामीणों को भी भुगतान पर सेवा देना था। लेकिन जब पंचायतों में ही इंटरनेट शुरू नहीं हुआ तो यह पूरा मॉडल ही ध्वस्त हो गया।