दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में तकनीकी नवाचार: दुर्ग कोचिंग डिपो ने तैयार किया लो-कॉस्ट एफआईबीए टेस्टिंग गैजेट


 

बिलासपुर, 15 जुलाई – दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के दुर्ग कोचिंग डिपो ने तकनीकी नवाचार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। आधुनिक एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) कोचों में इस्तेमाल होने वाले फेल्युर इंडिकेशन ब्रेक एप्लीकेशन (एफआईबीए) डिवाइस की जांच को अब और अधिक सरल व सुलभ बना दिया गया है। डिपो की टीम ने मात्र 7 हजार रुपये की लागत से एक एफआईबीए टेस्टिंग गैजेट तैयार किया है, जो पहले की तुलना में बेहद किफायती, पोर्टेबल और श्रम बचाने वाला है।

ब्रेक सिस्टम जांच में क्रांति

एलएचबी कोचों के ब्रेक सिस्टम में किसी भी तरह की गड़बड़ी को सूचित करने वाला एफआईबीए डिवाइस, अब तक जांच के लिए कोच से अलग करना पड़ता था। इस प्रक्रिया में दो से तीन कर्मचारियों की जरूरत होती थी और लगभग 1-2 घंटे का समय लगता था। लेकिन अब दुर्ग कोचिंग डिपो द्वारा तैयार किए गए गैजेट से यह काम एक कर्मचारी द्वारा कुछ ही मिनटों में किया जा सकेगा।

पुरानी सामग्री से नया आविष्कार

गैजेट की खास बात यह है कि इसे अप्रयुक्त और रिलीज्ड रेलवे सामग्रियों से तैयार किया गया है। इसमें 21 लीटर क्षमता वाला प्रेशर वेसल, तीन-पथ आइसोलेटिंग कॉक, ब्रेक इंडिकेटर, डुप्लेक्स चेक वॉल्व, विभिन्न आकार के बॉल वॉल्व, बीपी व एफपी प्रेशर गेज तथा स्टेनलेस स्टील पाइपें प्रमुख रूप से शामिल हैं।

यात्रियों की सुरक्षा को नया आयाम

रेलवे अधिकारियों के अनुसार, यह गैजेट कोच की पाइपिंग व्यवस्था में किसी भी प्रकार के परिवर्तन के बिना जांच की सुविधा देता है। इससे कोचिंग स्टाफ को प्रशिक्षण देने में भी आसानी होगी। इस नवाचार से न केवल समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक कदम

रेलवे प्रशासन ने इस प्रयास को ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की दिशा में एक प्रभावशाली कदम बताया है। भारतीय रेलवे में चल रहे तकनीकी सुधारों और नवाचार को प्रोत्साहन देने वाले इस प्रकार के प्रयोग भविष्य में अन्य जोनों के लिए भी मार्गदर्शक साबित हो सकते हैं।

रेलवे इंजीनियरों की प्रशंसा

रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने दुर्ग कोचिंग डिपो की टीम की सराहना करते हुए कहा कि सीमित संसाधनों में ऐसा व्यावहारिक और किफायती समाधान तैयार करना प्रेरणादायक है। इससे न केवल कार्यदक्षता बढ़ेगी बल्कि रेलवे की परिचालन लागत में भी कमी आएगी।

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