राज्य के कई आदिवासी बहुल जिलों में इन दिनों जंगल की सामुदायिक जमीनों को लेकर नया विवाद गहरा गया है। वन अधिकार अधिनियम के तहत जिन जमीनों का सामुदायिक अधिकार आदिवासियों और वनवासियों को मिला है, उन्हीं जमीनों के मैनेजमेंट पर अब सामाजिक संस्थाओं और सरकारी विभागों के बीच टकराव शुरू हो गया है।
सामाजिक संस्थाओं ने बढ़ाया दखल, वन विभाग ने लगाई रोक
जानकारी के मुताबिक, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने जंगलों में सामुदायिक जमीनों पर आदिवासियों के हितों का हवाला देकर अपनी गतिविधियां शुरू कर दी थीं। ये संस्थाएं रोजगार, शिक्षा और विकास कार्यों के नाम पर इन जमीनों के मैनेजमेंट का जिम्मा अपने हाथों में लेने का प्रयास कर रही थीं।
वन विभाग ने इस गतिविधि को अवैध बताते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी, जिससे विवाद और गहरा गया। विरोध के चलते वन विभाग ने आदेश तो निरस्त कर दिया, लेकिन इस पूरे मामले में अब केंद्र सरकार के आदिम जाति मंत्रालय और केंद्रीय वन मंत्रालय से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं।
केंद्र के निर्देश पर तय होगा भविष्य
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, जब तक केंद्र सरकार से स्पष्ट आदेश नहीं मिल जाते, तब तक इन जमीनों के मैनेजमेंट को लेकर कोई भी निर्णय नहीं लिया जाएगा। विभाग का कहना है कि जमीनों का अधिकार आदिवासियों को दिया गया है, लेकिन उनके संरक्षण और उपयोग से जुड़े दिशा-निर्देश केंद्र सरकार ही तय करती है। इसलिए अगली कार्रवाई केंद्र के निर्देश के बाद ही होगी।
पारंपरिक अधिकार बनाम विकास परियोजनाएं
राज्यभर में करीब 4 हजार 350 से अधिक सामुदायिक वन संसाधन अधिकार अब तक दिए जा चुके हैं। इन जमीनों पर वर्षों से वनवासी सामूहिक रूप से खेती, जल संग्रहण, चारागाह और वनोपज संग्रह जैसे काम कर रहे हैं।
लेकिन अब इन जगहों पर वर्किंग प्लान के तहत भी विभिन्न परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। हर 10 साल में वनों के प्रबंधन के लिए वर्किंग प्लान तैयार किया जाता है, जिसमें सामुदायिक जमीनें भी शामिल होती हैं। इससे टकराव की स्थिति बन रही है।
फंसे हुए हैं कई वर्किंग प्लान प्रोजेक्ट
सूत्रों के अनुसार, कई जिलों में पौधरोपण, जल संरक्षण और सुरक्षा घेरों से जुड़े प्रोजेक्ट सिर्फ इस वजह से अटक गए हैं कि जिन जमीनों पर ये योजनाएं लागू होनी हैं, वे सामुदायिक अधिकार वाली भूमि हैं। एक तरफ आदिवासी समुदाय इन जमीनों पर अपने परंपरागत अधिकारों को लेकर सख्त हैं, तो दूसरी तरफ वन विभाग अपने वर्किंग प्लान का हवाला दे रहा है।
आंकड़ों की नजर से
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4 लाख 78 हजार से अधिक वनवासियों को व्यक्तिगत वन अधिकार मिल चुके हैं।
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4,350 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार अब तक स्वीकृत।
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20 लाख हेक्टेयर से अधिक जंगल भूमि का आवंटन वनवासियों को।
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अब फैसले की घड़ी, केंद्र से आदेश का इंतजार।
वन विभाग का बयान
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,
"फिलहाल हमने सामाजिक संस्थाओं पर बैन वाले आदेश को निरस्त कर दिया है। हम केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश का इंतजार कर रहे हैं। उनका आदेश मिलने के बाद ही तय होगा कि सामुदायिक जमीनों का प्रबंधन कैसे और किन शर्तों पर होगा।"
जंगल में बढ़ती हलचल, आदिवासी संगठनों में भी नाराजगी
इधर, आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि उनके अधिकारों में कोई दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनका कहना है कि यह जमीन उनकी आजीविका से जुड़ी है और सामाजिक संस्थाओं के नाम पर बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है।