छत्तीसगढ़ में बच्चों की सुरक्षा पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार से मांगा जवाब


 

रायपुर, 15 जुलाई 2025
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य में बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है। हाल ही में जांजगीर-चांपा और कांकेर जिलों में बच्चों के साथ हुई दो अलग-अलग घटनाओं को स्वतः संज्ञान में लेते हुए हाईकोर्ट ने इन मामलों को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार किया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और उनकी डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार से जवाब तलब करते हुए कहा कि भले ही सरकार सीधे तौर पर इन घटनाओं की दोषी न हो, लेकिन संविधान के तहत बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी अनिवार्य जिम्मेदारी है।

हादसों से जुड़ी घटनाएं बनीं जनहित मुद्दा

पहली घटना जांजगीर-चांपा जिले के भैंसतारा गांव की है, जहां 12 जुलाई को स्कूल से लौटने के बाद चार बच्चे नहाने के लिए गांव के डबरी तालाब की ओर गए। खेलते-खेलते वे तालाब की गहराई में चले गए और डूबने से उनकी मौत हो गई। ग्रामीणों को तब जानकारी मिली जब बच्चों के शव पानी की सतह पर आए। यह घटना पूरे गांव में शोक का कारण बनी।

दूसरी घटना कांकेर जिले के केसलपारा गांव की है, जहां मिडिल स्कूल जाने वाले बच्चों को प्रतिदिन कमर तक बहते पानी में नाला पार करना पड़ता है। गांव में केवल प्राथमिक विद्यालय है, जिससे मिडिल स्कूल के लिए कनागांव जाना आवश्यक होता है। बरसात के दिनों में नाले का बहाव तेज हो जाता है, जिससे बच्चों का स्कूल जाना बेहद खतरनाक हो जाता है। ग्रामीणों ने कई बार पुल निर्माण की मांग की, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं।

हाईकोर्ट के तीखे सवाल

इन दोनों मामलों पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार को बच्चों के जीवन की रक्षा सुनिश्चित करनी होगी। कोर्ट ने सवाल उठाया कि आखिर ऐसे संवेदनशील स्थानों की पहचान और उनके लिए सुरक्षा उपाय अब तक क्यों नहीं किए गए?

कोर्ट ने निर्देश दिया कि स्कूलों के आसपास मौजूद तालाब, पुलिया, नालों जैसे खतरनाक क्षेत्रों को तुरंत चिन्हित कर वहाँ सुरक्षा उपाय किए जाएं। साथ ही राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया गया है कि वे 29 जुलाई तक व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करें और बताएं कि सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं और किन कारणों से इस दिशा में विफलता सामने आई।

सामाजिक जागरूकता और प्रशासनिक सजगता की जरूरत

हाईकोर्ट की टिप्पणी एक बार फिर बच्चों की सुरक्षा के प्रति प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है। यह केवल प्रशासन का नहीं बल्कि समाज की भी सामूहिक जिम्मेदारी है कि बच्चों को एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण मिले।

हाईकोर्ट की यह सक्रियता एक उम्मीद जगा रही है कि अब बच्चों के जीवन से जुड़ी समस्याओं को प्राथमिकता मिलेगी और ज़मीनी स्तर पर ठोस बदलाव देखने को मिलेंगे।

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