छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर 25 जुलाई को हुई दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी के बाद से देश की राजनीति में भूचाल आ गया है। इन ननों पर आदिवासी युवतियों को आगरा ले जाकर धर्मांतरण और मानव तस्करी का आरोप लगाया गया है। बजरंग दल की शिकायत के आधार पर दुर्ग जीआरपी ने दोनों ननों और एक युवक को हिरासत में लिया, जिसके बाद यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर गूंज उठा। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस घटना को अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार देते हुए केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला है।
संसद के बाहर कांग्रेस का प्रदर्शन
28 जुलाई को दिल्ली स्थित संसद भवन के बाहर कांग्रेस नेताओं ने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में पार्टी की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, सांसद केसी वेणुगोपाल, सप्तगिरी उल्का, बेनी बेहनन, इंग्रिड मैकलोड, एन.के. प्रेमचंद्रन, फ्रांसिस जॉर्ज और अन्य सांसद शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में 'ननों को रिहा करो, गुंडों को गिरफ्तार करो' जैसे स्लोगन लिखी तख्तियां ले रखी थीं। नेताओं ने आरोप लगाया कि ननों के साथ बदसलूकी की गई और उन्हें झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेजा गया।
राहुल गांधी का तीखा हमला
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर इस घटना को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, "छत्तीसगढ़ में दो कैथोलिक ननों को उनकी आस्था के कारण जेल भेजा गया है। यह भाजपा-आरएसएस की भीड़तंत्र की मानसिकता को दर्शाता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, जो संविधान प्रदत्त अधिकार है। हम इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाते रहेंगे और ननों की तुरंत रिहाई की मांग करते हैं।"
प्रियंका गांधी ने कहा- यह आदिवासी महिलाओं का अपमान
प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि ननों पर झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम किया गया। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ भाजपा शासन के तहत चल रही सिस्टेमैटिक उत्पीड़न की श्रृंखला का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यह आदिवासी महिलाओं की बेइज्जती है, जिनका केवल नौकरी के उद्देश्य से सफर किया जा रहा था।
सांसदों ने जेल में की ननों से मुलाकात
कांग्रेस सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दुर्ग जेल में जाकर गिरफ्तार ननों वंदना फ्रांसिस और प्रीति मेरी से मुलाकात की। मुलाकात के बाद सांसद सप्तगिरि उल्का ने कहा कि हम सत्य जानने आए थे और यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों सिस्टर्स को जानबूझकर इस केस में फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने पुलिस के संरक्षण में स्टेशन पर हंगामा किया और झूठे आरोप लगाकर मामला खड़ा किया गया।
वृंदा करात और केसी वेणुगोपाल ने क्या कहा?
माकपा नेता वृंदा करात ने कहा कि यह एक सुनियोजित साजिश है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों को बदनाम कर रही है और उनकी आस्था का अपमान कर रही है। वृंदा करात ने यह भी आरोप लगाया कि आदिवासी लड़कियों को पीटने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि नर्स और फार्मासिस्ट ननों को जेल भेजा गया।
वहीं कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने इस मुद्दे पर केंद्रीय गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि ननों के पास लड़कियों के परिजनों की अनुमति थी और वे उन्हें कानूनी रूप से नौकरी दिलाने के लिए ले जा रही थीं, लेकिन बजरंग दल के दबाव में पुलिस ने कार्रवाई की।
बीजेपी सरकार का पक्ष
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस मामले को लेकर कहा कि कानून अपना काम कर रहा है और प्रकरण कोर्ट में है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि नारायणपुर की तीन युवतियों को नौकरी और नर्सिंग ट्रेनिंग का वादा कर आगरा ले जाया जा रहा था, जिसमें प्रलोभन देकर धर्मांतरण और मानव तस्करी की कोशिश की जा रही थी।
बजरंग दल का दावा
बजरंग दल की प्रदेश संयोजिका ज्योति शर्मा ने दावा किया कि 25 जुलाई को सुबह 8:30 बजे दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो मिशनरी सिस्टर और एक युवक तीन युवतियों के साथ घूम रहे थे। इस दौरान एक युवती रो रही थी और युवक उसे चुप करा रहा था। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को शक हुआ और उन्होंने पूछताछ शुरू की। पूछताछ के बाद बजरंग दल ने पुलिस को बुलाया और तीनों को थाने ले जाया गया।
लड़कियों के परिजनों का बयान
इस पूरे मामले में एक नया मोड़ तब आया जब तीनों युवतियों के परिजन, विशेषकर कमलेश्वरी प्रधान की मां बुधिया प्रधान ने मीडिया से बातचीत में बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को खुद नौकरी के लिए भेजा था। उन्होंने कहा, "हमने अपनी बेटी को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए भेजा था। ननों पर लगाए गए आरोप निराधार हैं।"