छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने नगर निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (TCP) विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जानकारी के अनुसार, एक फर्जी आर्किटेक्ट के नाम पर नगर निगम और टीसीपी विभाग के कुछ अधिकारियों ने पिछले दस वर्षों में 400 से अधिक नक्शे और 150 से ज्यादा ले-आउट पास कर दिए। इस पूरे मामले में विभागीय जांच में गड़बड़ी की पुष्टि हो चुकी है और जल्द ही कानूनी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।
कैसे सामने आया घोटाला?
घोटाले का खुलासा तब हुआ जब 13 मई 2025 को नगर निगम की टीम ने शहर के पुराने बस स्टैंड क्षेत्र स्थित महुआ होटल पर अवैध निर्माण के चलते बुलडोजर चलाया। इस होटल का नक्शा रामचंद्र लालचंदानी, दौलतराम चौधरी और महक आहूजा के नाम पर पास हुआ था। जांच में सामने आया कि इस निर्माण कार्य में भवन अनुज्ञा की शर्तों का उल्लंघन किया गया था और पार्किंग व ओपन स्पेस पर अवैध निर्माण किया गया था।
इस प्रोजेक्ट की सुपरविजन का शपथ पत्र आर्किटेक्ट "विकास सिंह" के नाम पर था। जब निगम ने इस आधार पर जांच शुरू की, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। विकास सिंह का लाइसेंस क्रमांक 234 के रूप में निगम में पंजीकृत था और उसके मोबाइल नंबर (7415380854) की जांच करने पर पता चला कि वह नंबर मयूर गेमनानी नामक व्यक्ति के नाम पर दर्ज है।
फर्जी नाम पर वर्षों से चल रहा था फर्जीवाड़ा
जांच में पाया गया कि विकास सिंह नामक आर्किटेक्ट के नाम पर 10 जुलाई 2015 से लेकर जून 2025 तक लगातार नक्शे और ले-आउट पास किए जाते रहे। 24 जुलाई 2025 को जब इस लाइसेंस को ब्लैकलिस्ट किया गया, तब एसोसिएशन ने बताया कि विकास सिंह नाम का कोई पंजीकृत आर्किटेक्ट उनके रिकॉर्ड में नहीं है। इसी सूचना के आधार पर नगर निगम ने विस्तृत जांच शुरू की, जिससे पूरे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो गया।
एक दिन में 29 फाइलों की स्वीकृति
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि विकास सिंह के नाम से केवल नक्शे ही नहीं, बल्कि 150 से अधिक ले-आउट भी पास किए गए। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है, जिनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि एक ही दिन में 29 फाइलों को स्वीकृति दे दी गई। यह काम बिना उच्चस्तरीय संरक्षण के संभव नहीं माना जा रहा।
नक्शा और ले-आउट पास कराने में लगता है इतना खर्च
नगर निगम के अनुसार, यदि कोई डेवलपर 1 एकड़ भूमि का रिहायशी ले-आउट पास कराना चाहता है, तो उसकी लागत 75,000 से 2.5 लाख रुपये तक आती है। वहीं 1000 वर्गफुट के आवासीय नक्शे को पास कराने में 8,000 से 20,000 रुपये तक का खर्च होता है। इतने बड़े पैमाने पर हुए फर्जीवाड़े से करोड़ों की अनियमितता का अनुमान लगाया जा रहा है।
EOW को सौंपा जाएगा मामला, FIR की तैयारी
बिलासपुर नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि इस पूरे मामले को जल्द ही आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) को सौंपा जा सकता है। साथ ही एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है। प्राथमिक जांच में नगर निगम और टीसीपी के कई अधिकारियों की मिलीभगत की पुष्टि हो चुकी है और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कई बड़े नाम उजागर हो सकते हैं।
भ्रष्टाचार की नई मिसाल
इस घोटाले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किस तरह से सरकारी विभागों में बैठे भ्रष्ट अफसर नियमों और कानूनों को ताक पर रखकर निजी स्वार्थ के लिए खेल खेलते हैं। एक फर्जी आर्किटेक्ट के नाम पर पूरे 10 वर्षों तक इतने बड़े स्तर पर नक्शे और ले-आउट पास किए जाना केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है।
अब देखना यह होगा कि जांच एजेंसियां इस मामले में कितनी गंभीरता से कार्रवाई करती हैं और दोषियों को कब तक सजा दिला पाती हैं। जनता को भी इस प्रकार की योजनाओं में पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे फर्जीवाड़ों पर लगाम लगाई जा सके।