रायपुर-बिलासपुर नेशनल हाइवे में 1500 करोड़ की गड़बड़ी उजागर, तीन साल में ही सड़क जर्जर


 

रायपुर-बिलासपुर नेशनल हाइवे के निर्माण में भारी अनियमितता सामने आई है। लगभग 1500 करोड़ रुपये की लागत से बनी 127 किलोमीटर लंबी फोर और सिक्स लेन कांक्रीट सड़क महज तीन वर्षों में ही दरारों से भर गई है। सड़क में 4 से 5 मिलीमीटर से बड़ी दरारें पाई गई हैं, जिससे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को सड़क के पैनल दोबारा बदलने का काम शुरू करना पड़ा।

एनएचएआई के अनुसार, निर्माण के दौरान कुल 6600 पैनल डाले गए थे, जिनमें से अब तक 5800 पैनल को उखाड़कर दोबारा बनाया जा चुका है। शेष 800 पैनल को सितंबर 2025 तक बदलने का लक्ष्य रखा गया है।

वाहन चालकों को तीन घंटे लग रहे हैं

रायपुर से बिलासपुर के बीच प्रतिदिन लगभग दो लाख वाहन चलते हैं। पहले जहां यह दूरी दो घंटे में पूरी होती थी, अब सड़क की स्थिति बिगड़ने के कारण लोगों को तीन घंटे से अधिक का समय लग रहा है। इससे न केवल यात्रियों को परेशानी हो रही है बल्कि परिवहन और लॉजिस्टिक्स सेक्टर को भी बड़ा नुकसान हो रहा है।

निर्माण कार्य में तीन कंपनियों की जिम्मेदारी

इस सड़क का निर्माण वर्ष 2018 में एनएचएआई द्वारा टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से एलएंडटी, पुंज एलायड और दिलीप बिल्डकॉन को सौंपा गया था। इसमें रायपुर-सिमगा, सिमगा-सरगांव और सरगांव-बिलासपुर तीन हिस्सों में बांटकर निर्माण किया गया। वर्ष 2021 तक यह सड़क बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन महज दो साल बाद ही इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे।

कांक्रीट सड़क में दरारें क्यों?

एनएचएआई के अधिकारियों का कहना है कि कांक्रीट सड़कें पैनल सिस्टम पर आधारित होती हैं, जिसमें एक पैनल खराब होने पर उसे अलग से बदला जा सकता है। यह डामर सड़कों से अलग होता है, जहां पूरे हिस्से को उखाड़ना पड़ता है। पैनल में दरारें आना असामान्य माना जाता है, खासकर तब जब सड़क केवल तीन साल पुरानी हो।

अधिकारियों का यह भी कहना है कि यदि दरारें 4 मिमी से अधिक चौड़ी होती हैं, तो पूरे पैनल को बदलना जरूरी हो जाता है। रायपुर-बिलासपुर हाइवे पर यही स्थिति सामने आई है, जिससे हजारों पैनल बदलने की नौबत आ गई।

जांच के बाद कार्रवाई शुरू

जब एनएचएआई को सड़क की खराब स्थिति की जानकारी मिली, तो तुरंत जांच कराई गई। जांच में पुष्टि हुई कि बड़ी संख्या में पैनल में दरारें आ चुकी हैं। चूंकि ठेका एजेंसियों के साथ चार साल का मेंटेनेंस अनुबंध था, इसलिए उन्हें बिना कोई बहाना बनाए पैनल बदलने के निर्देश दे दिए गए।

फिलहाल ठेका एजेंसियां युद्धस्तर पर कार्य कर रही हैं और 5800 पैनल बदले जा चुके हैं। एनएचएआई ने आश्वस्त किया है कि शेष काम सितंबर 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा।

जवाबदेही पर उठे सवाल

सड़क निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद तीन साल में ही सड़क की यह स्थिति होना गंभीर चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि या तो निर्माण सामग्री में भारी गड़बड़ी की गई है या निर्माण प्रक्रिया में लापरवाही बरती गई है। इन सबके बीच एनएचएआई की निगरानी व्यवस्था भी सवालों के घेरे में आ गई है।

जनता और सामाजिक संगठनों की मांग है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए ताकि जिम्मेदार लोगों को सजा मिल सके और भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

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