बिलासपुर, छत्तीसगढ़ – दुर्ग रेलवे स्टेशन से 25 जुलाई को धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार की गईं केरल की दो नन – प्रीति मेरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस – तथा पास्टर सुखमन मंडावी को बिलासपुर की एनआईए स्पेशल कोर्ट से जमानत मिल गई है। शनिवार को स्पेशल कोर्ट के प्रिंसिपल एंड डिस्ट्रिक्ट जज सिराजुद्दीन कुरैशी ने तीनों को 50-50 हजार रुपये के मुचलके पर सशर्त जमानत दी।
जमानत की शर्तें सख्त
कोर्ट ने आदेश में यह स्पष्ट किया कि तीनों आरोपी देश छोड़कर नहीं जा सकते। उनके पासपोर्ट कोर्ट में जमा रहेंगे। साथ ही, जब भी जांच एजेंसियां या पुलिस बुलाएंगी, तो उन्हें उपस्थित होना होगा। यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर काफी बहस छिड़ी हुई है।
गिरफ्तारी का घटनाक्रम
उल्लेखनीय है कि 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल कार्यकर्ताओं की शिकायत पर आरपीएफ ने ननों और पास्टर को उस समय हिरासत में लिया था, जब वे नारायणपुर की तीन युवतियों के साथ ट्रेन में सवार थीं। आरोप लगाया गया कि तीनों आरोपी इन युवतियों को बहला-फुसलाकर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए केरल ले जा रहे थे।
इसके बाद मामला तूल पकड़ गया और पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। मामले की प्रारंभिक सुनवाई दुर्ग सेशन कोर्ट में की गई, लेकिन अधिकार क्षेत्र न होने का हवाला देते हुए कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया। बाद में अधिवक्ता अमृतो दास की ओर से बिलासपुर की एनआईए स्पेशल कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की गई, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने तीनों आरोपियों को सशर्त राहत दे दी।
राजनीतिक मोड़: भाजपा अध्यक्ष खुद पहुंचे जेल
रिहाई के बाद इस पूरे घटनाक्रम में एक नया मोड़ तब आया, जब केरल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर स्वयं दुर्ग जेल पहुंचे और दोनों ननों को अपनी गाड़ी में बैठाकर दुर्ग स्थित ज्योति चर्च ले गए। भाजपा की इस पहल को कई राजनीतिक जानकार “छवि सुधार अभियान” बता रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे “दोहरे चेहरे” की राजनीति करार दे रहा है।
मुख्यमंत्री का सख्त रुख
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “धर्मांतरण छत्तीसगढ़ के लिए एक कलंक है और इसे रोकने के लिए अंतिम लड़ाई लड़ी जा रही है। हमारी सरकार ठोस कदम उठाएगी।” साथ ही मुख्यमंत्री ने बताया कि अटल जयंती महोत्सव को लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया है, जिन्होंने अपनी सहमति भी दे दी है। इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी जल्द घोषणा की बात कही गई।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया: गिरफ्तारी जबरदस्ती थी
वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री ने कहा कि अदालत के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि तीनों आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि यह गिरफ्तारी पूरी तरह से जबरदस्ती और राजनीतिक दबाव में की गई थी। उन्होंने सवाल उठाया, “जो लोग इन निर्दोषों को जेल भेज रहे थे, अब वही उन्हें बाहर निकाल रहे हैं। भाजपा का यह सिर्फ दिखावा है।”
मानवाधिकार संगठनों की चिंता
मामले ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का ध्यान भी खींचा है। कई संस्थाओं ने इस गिरफ्तारी को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। उनका कहना है कि सिर्फ आरोप के आधार पर गिरफ्तारी और फिर सामाजिक बदनामी, एक लोकतांत्रिक देश में अस्वीकार्य है।
आगे की रणनीति
अधिवक्ता अमृतो दास ने बताया कि अगला कदम एफआईआर को रद्द करवाने की याचिका दाखिल करना होगा। उन्होंने कहा कि जब तक अदालत में आरोप सिद्ध न हो, तब तक किसी की धार्मिक आस्था पर सवाल उठाना संविधान की भावना के खिलाफ है।