छत्तीसगढ़ में ईवी की रफ्तार तेज, लेकिन चार्जिंग स्टेशन अब भी बड़ी चुनौती


 

छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है। चार साल पहले जहां राज्य में महज छह हजार ई-वाहन बिक रहे थे, वहीं अब यह आंकड़ा एक साल में 25 हजार से अधिक हो गया है। परिवहन विभाग के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2025 तक 1.49 लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक गाड़ियां राज्य की सड़कों पर दौड़ रही हैं। हालांकि, जिस रफ्तार से ई-वाहनों की बिक्री बढ़ी है, उतनी तेजी से चार्जिंग स्टेशन नहीं बढ़ पाए हैं। यही वजह है कि अधिकांश वाहन मालिक चार्जिंग की समस्या से जूझ रहे हैं।

चार्जिंग स्टेशन की मौजूदा स्थिति

राज्यभर में वर्तमान समय में चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 290 ही है। इनमें भी आधे से ज्यादा रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जैसे बड़े शहरों में मौजूद हैं। बाकी जिलों में यह संख्या बेहद कम है, जिससे दूरदराज़ क्षेत्रों में ई-वाहन मालिकों को गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई बार लोग लंबी दूरी की यात्रा पर ईवी का इस्तेमाल करने से बचते हैं क्योंकि रास्ते में चार्जिंग सुविधा उपलब्ध नहीं होती।

कारोबारी स्वप्निल मिश्रा बताते हैं कि उनकी ईवी कार एक बार चार्ज होने पर अधिकतम 200 किलोमीटर चल पाती है। ऐसे में रायपुर से बस्तर या गरियाबंद जैसी लंबी दूरी की यात्रा करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि बीच रास्ते में चार्जिंग स्टेशन नहीं मिलते। इसी वजह से वे लंबे सफर के लिए अब भी पेट्रोल कार का इस्तेमाल करते हैं।

इसी तरह रायपुर के कारोबारी चेतन साहू का अनुभव भी निराशाजनक रहा। उनका कहना है कि जब उन्होंने ईवी खरीदी थी, तब दावा किया गया था कि एक बार चार्ज में 300 किलोमीटर तक चलेगी, लेकिन उनकी गाड़ी डेढ़ सौ किलोमीटर से आगे कभी नहीं गई। रायपुर से ओडिशा के नोवापाड़ा तक के सफर में उन्हें एक भी चार्जिंग प्वाइंट नहीं मिला।

हादसों का खतरा

चार्जिंग की सुविधा न होने पर अधिकांश लोग घरों में ही अपने वाहनों को चार्ज करने लगते हैं। इससे कई बार हादसे भी हो चुके हैं, जिनमें लोगों की जान तक चली गई। विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू कनेक्शन पर लंबे समय तक उच्च क्षमता वाली बैटरी चार्ज करना सुरक्षित नहीं होता। यही कारण है कि सरकार अब बड़े पैमाने पर नए चार्जिंग स्टेशन खोलने पर जोर दे रही है।

सरकार की रणनीति

परिवहन विभाग का दावा है कि 2027 तक छत्तीसगढ़ में पांच लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक गाड़ियां सड़कों पर उतर जाएंगी। इस अनुमान को देखते हुए चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार करना अब सबसे बड़ी प्राथमिकता बन चुका है।

सरकार ने ईवी डीलरों से कहा है कि वे अपने शोरूम या बिक्री केंद्र पर कम से कम एक चार्जिंग स्टेशन अनिवार्य रूप से स्थापित करें। अगर वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं करते तो नियम को लागू कर अनिवार्य किया जाएगा। इसी तरह पेट्रोल पंप संचालकों को भी परिसर में चार्जिंग प्वाइंट लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें चार्जिंग उपकरण कंपनियों के साथ एमओयू करने की सुविधा दी जाएगी और सरकार भी इसमें मदद करेगी।

नगर निगमों की भूमिका

राज्य के कई नगर निगम इस दिशा में काम शुरू कर चुके हैं। रायपुर नगर निगम ने एक निजी कंपनी के साथ एमओयू कर छह से ज्यादा चार्जिंग स्टेशन खोल दिए हैं। आने वाले समय में अन्य निगमों को भी ऐसे प्रस्ताव लाने के निर्देश दिए गए हैं। निगम फ्लाईओवर के नीचे दोपहिया वाहनों के लिए कम शुल्क पर चार्जिंग स्टेशन खोलने पर विचार कर रहे हैं। वहीं सरकारी दफ्तरों की पार्किंग में भी चार्जिंग प्वाइंट लगाए जाएंगे, ताकि वहां आने वाले लोग आसानी से गाड़ी चार्ज कर सकें।

राष्ट्रीय व राज्य मार्गों पर सुविधा

सरकार का एक और बड़ा प्लान है कि राष्ट्रीय और राज्य मार्गों पर न्यूनतम किराये पर जमीन उपलब्ध कराकर चार्जिंग और बैटरी स्वैपिंग स्टेशन स्थापित किए जाएं। इससे लंबी दूरी की यात्रा करने वाले वाहन चालकों को राहत मिलेगी और ईवी उपयोग को और बढ़ावा मिलेगा।

आगे की चुनौती

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चार्जिंग स्टेशनों का नेटवर्क समय रहते नहीं बढ़ाया गया तो लोग ई-वाहनों से भरोसा खो सकते हैं। इससे प्रदूषण कम करने और पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता घटाने का लक्ष्य भी प्रभावित होगा। इसलिए आवश्यक है कि सरकार, निजी कंपनियां और वाहन डीलर मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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