छत्तीसगढ़: बिना मान्यता चल रहे प्राइवेट स्कूलों पर हाईकोर्ट सख्त, शिक्षा सचिव से मांगा दोबारा जवाब


 

छत्तीसगढ़ में बिना मान्यता संचालित हो रहे निजी स्कूलों को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने मंगलवार को हुई सुनवाई में सरकार के जवाब को असंतोषजनक बताते हुए शिक्षा सचिव से दोबारा शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अफसरों की लापरवाही और निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के कारण गरीब छात्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पा रहा, जो बेहद चिंताजनक है।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि छत्तीसगढ़ जैसे प्रगतिशील राज्य में शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर इस तरह की लापरवाही दुखद है। उन्होंने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “प्राइवेट स्कूल मालिक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं और खुद मर्सिडीज जैसी महंगी गाड़ियों में घूम रहे हैं। वहीं, गरीब छात्रों को उनके शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है।”

याचिकाकर्ता का पक्ष

यह मामला कांग्रेस नेता विकास तिवारी द्वारा लगाई गई जनहित याचिका से जुड़ा है। उन्होंने कोर्ट में बताया कि राज्य में करीब 7195 निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें से 350 से अधिक स्कूल बिना किसी मान्यता के चल रहे हैं। इन स्कूलों में नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन राज्य शासन द्वारा 2013 में जारी दिशा-निर्देशों के बावजूद इन स्कूलों ने अब तक मान्यता प्राप्त नहीं की है।

शिक्षा सचिव का जवाब और कोर्ट की नाराजगी

मंगलवार की सुनवाई में शिक्षा विभाग की ओर से दाखिल शपथपत्र में कहा गया कि नर्सरी स्कूलों के लिए मान्यता का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इस पर कोर्ट ने तीव्र नाराजगी जताई और कहा कि जब 2013 में स्पष्ट आदेश जारी हो चुके हैं, तो फिर इस तरह की स्थिति क्यों बनी हुई है?

कोर्ट ने कहा, "शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते राज्य में हजारों छात्र अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे।"

अगली सुनवाई 13 अगस्त को

कोर्ट ने शिक्षा सचिव को 13 अगस्त तक दोबारा व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि राज्य में बिना मान्यता चल रहे स्कूलों पर क्या कार्रवाई की जा रही है और कितने स्कूल अभी भी ऐसे हैं जिनके पास आवश्यक मान्यता नहीं है।

कोर्ट का अंतरिम आदेश

हाईकोर्ट ने अंतरिम रूप से आदेश दिया है कि जब तक किसी स्कूल को मान्यता प्राप्त नहीं हो जाती, वह कोई नया प्रवेश नहीं ले सकता। हालांकि, पहले से दर्ज छात्रों की पढ़ाई बाधित नहीं की जाएगी। यह व्यवस्था छात्रों के भविष्य को देखते हुए की गई है ताकि वे बीच में शिक्षा से वंचित न रह जाएं।

मामला क्यों है गंभीर?

RTE यानी निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना हर स्कूल की जिम्मेदारी है। लेकिन याचिकाकर्ता का दावा है कि कई प्राइवेट स्कूल जानबूझकर मान्यता नहीं लेते ताकि उन्हें इस अधिनियम का पालन न करना पड़े और उन्हें RTE के तहत गरीब छात्रों को मुफ्त प्रवेश न देना पड़े।

इस रवैये से समाज के वंचित तबकों के बच्चे शिक्षा के मूल अधिकार से दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और दो टूक आदेश दिया है कि बिना मान्यता वाले स्कूलों को रोका जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए

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