फैंसी नंबरों की बढ़ती चाहत, डंप नंबरों पर दोबारा समीक्षा की तैयारी


 

छत्तीसगढ़ में गाड़ियों की नंबर प्लेट पर फैंसी नंबर पाने की होड़ लगातार बढ़ती जा रही है। खासकर राजधानी रायपुर में ऐसे नंबरों की डिमांड सबसे अधिक रहती है। लोग अपनी गाड़ी की रजिस्ट्रेशन सीरीज का इंतजार करते हैं ताकि मनपसंद नंबर लेकर अपनी गाड़ी को खास बना सकें। परिवहन विभाग के अनुसार, फैंसी नंबरों की ऑनलाइन नीलामी से हर साल औसतन 16 से 18 करोड़ रुपये की कमाई हो रही है। इसके बावजूद कई ऐसे नंबर भी हैं जिन्हें कोई खरीददार नहीं मिल रहा। यही वजह है कि डंप फैंसी नंबरों की संख्या बीते चार साल में बढ़कर 32 हजार से ज्यादा हो चुकी है।


कौन से नंबर सबसे ज्यादा लोकप्रिय?


फैंसी नंबरों में 0001 को सबसे प्रतिष्ठित माना जाता है। इस नंबर की बोली 1 लाख रुपये से शुरू होती है। इसके बाद 0007, 0009 और 0786 जैसे नंबरों की नीलामी 80 हजार रुपये से होती है। वहीं, 0002 से 0006 तक के नंबर और 1111, 2222, 3333, 4444 से लेकर 9999 तक के नंबर 50 हजार रुपये की शुरुआती कीमत पर उपलब्ध होते हैं। इसके अलावा कई नंबर ऐसे भी हैं जिनकी नीलामी 30 हजार रुपये से शुरू होती है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 30 हजार श्रेणी वाले नंबरों के खरीदार बहुत कम होते हैं। यही कारण है कि ये नंबर लगातार न बिक पाने की वजह से डंप हो रहे हैं।


रायपुर में सबसे ज्यादा मांग


राजधानी रायपुर में फैंसी नंबरों की सबसे ज्यादा डिमांड देखी जाती है। यहां कई वाहन मालिक नई सीरीज आने का इंतजार करते हैं और तभी अपनी नई गाड़ी खरीदते हैं ताकि मनपसंद नंबर ले सकें। रायपुर के अलावा बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई, धमतरी और राजनांदगांव जैसे जिलों में भी इन नंबरों को लेकर उत्साह रहता है। लेकिन जिन नंबरों को रायपुर में खरीदार नहीं मिलते, वही नंबर बाकी जिलों में भी नहीं बिक पाते।


कब शुरू हुई थी यह प्रक्रिया?


फैंसी नंबरों की नीलामी की शुरुआत वर्ष 2012-13 में की गई थी। इसके पहले कुछ खास नंबरों के लिए रसूखदार लोगों का हस्तक्षेप होता था। बड़े नेताओं और अफसरों के फोन से गाड़ियों के लिए विशेष नंबर आवंटित किए जाते थे। इस खींचतान को खत्म करने के लिए सरकार ने ऐसे नंबरों को अलग सूचीबद्ध किया और ऑनलाइन नीलामी की प्रक्रिया शुरू की। तब से लेकर अब तक यह प्रणाली लागू है और हर साल लाखों रुपये की आय सरकार को होती है।


च्वाइस और फैंसी नंबर में फर्क


अक्सर लोग च्वाइस नंबर और फैंसी नंबर में भ्रमित हो जाते हैं। दरअसल, च्वाइस नंबर कोई भी हो सकता है, जिसे वाहन मालिक शुभ अंक मानते हैं या व्यक्तिगत महत्व रखते हैं। इसके लिए वे अतिरिक्त शुल्क चुकाकर अपनी पसंद का नंबर ब्लॉक करा लेते हैं। जबकि फैंसी नंबर अलग सूची में रखे गए खास नंबर हैं जिनकी मांग आम तौर पर बहुत ज्यादा होती है। इन्हें सीधे ऑनलाइन बुक नहीं किया जा सकता बल्कि नीलामी के जरिए ही हासिल किया जाता है।



डंप नंबरों पर सरकार की समीक्षा


हालांकि 0001, 0007 जैसे टॉप-10 नंबर हमेशा तेजी से बिक जाते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में बाकी नंबर लगातार डंप हो रहे हैं। अनुमान है कि हर नई सीरीज में ऐसे कई नंबर फिर से शामिल कर दिए जाते हैं जिन पर कोई बोली नहीं लगती। परिणामस्वरूप चार साल में यह संख्या 32 हजार से ज्यादा हो गई है। अब शासन स्तर पर इस पर विचार चल रहा है कि जिन नंबरों की डिमांड बिल्कुल नहीं है, उन्हें फैंसी की सूची से बाहर किया जाए। परिवहन विभाग जल्द ही इसके लिए समीक्षा कर शासन को प्रस्ताव भेज सकता है।


लोगों की मानसिकता और बढ़ती प्रतिस्पर्धा


वाहन मालिकों के बीच यह धारणा बन चुकी है कि खास नंबर उनकी गाड़ी को अलग पहचान देता है। कई लोग अपने शुभ अंक या पसंदीदा नंबर पर बड़ी रकम खर्च करने को भी तैयार रहते हैं। 0001 और 0007 जैसे नंबर स्टेटस सिंबल बन चुके हैं। यही वजह है कि इनकी शुरुआती कीमत अधिक होने के बावजूद बोली लगते ही यह तुरंत बिक जाते हैं। दूसरी ओर, जिन नंबरों की खास पहचान नहीं है, उन्हें लोग लेना नहीं चाहते।

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