कोंडागांव (छत्तीसगढ़)।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के बयानार में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (CAF) के एक जवान ने अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। मृतक जवान की पहचान प्लाटून कमांडर दिनेश सिंह चंदेल के रूप में हुई है, जो दुर्ग जिले के रहने वाले थे। यह दर्दनाक घटना रविवार देर रात को घटी, जिसने सुरक्षा बलों की मानसिक स्थिति और व्यवस्था पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर जांच शुरू कर दी गई है। अभी तक किसी अधिकारी ने इस घटना को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। आत्महत्या की वजह स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर क्यों बस्तर जैसे संवेदनशील इलाकों में तैनात जवान अपनी जान देने को मजबूर हो रहे हैं।
बीजापुर, जगदलपुर और अब कोंडागांव – बढ़ते मामले
कोंडागांव की इस घटना से ठीक पांच दिन पहले, बीजापुर जिले के नैमेड़ थाना क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान पप्पू यादव ने खुद को गोली मार ली थी। वह बिहार के भोजपुर जिले के ठाकुरी गांव के निवासी थे और मिनगाचल में 22वीं बटालियन में पदस्थ थे। वह छुट्टी से लौटे ही थे, जब उन्होंने बैरक में सुबह पांच बजे अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मार ली।
इसी महीने जगदलपुर के परपा थाना क्षेत्र में भी एक आरक्षक ने अपने सरकारी क्वार्टर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वह जशपुर जिले का रहने वाला था और कुछ दिन पहले ही उसका तबादला परपा से लोहंडीगुड़ा कर दिया गया था।
जवानों की आत्महत्या की मुख्य वजहें
इन मामलों से यह साफ हो रहा है कि जवानों की आत्महत्या के पीछे कई गंभीर और चिंताजनक कारण हैं:
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छुट्टी न मिलना:
सबसे बड़ी वजह यह सामने आई है कि जवानों को समय पर छुट्टियां नहीं मिलतीं, जिससे वे मानसिक रूप से टूट जाते हैं। छुट्टियों के लिए बार-बार आवेदन करना और फिर भी स्वीकृति न मिलना जवानों में गहरा तनाव पैदा करता है। -
पारिवारिक कलह:
कई मामलों में जवान छुट्टी से लौटने के बाद आत्महत्या करते हैं, जिससे पारिवारिक विवाद भी एक अहम वजह के रूप में सामने आया है। -
कम्युनिकेशन गैप:
वरिष्ठ अधिकारियों और जवानों के बीच संवाद की कमी, समस्याओं को साझा न कर पाने की स्थिति भी मानसिक दबाव को बढ़ा देती है। -
मनोरोग और तनाव:
रिपोर्टों के अनुसार, अर्धसैनिक बलों में मानसिक रोगियों की संख्या 2020 में 3,584 से बढ़कर 2022 में 4,940 तक पहुंच गई है। -
प्रशासनिक लापरवाही:
जवानों की समस्याओं को हल्के में लिया जाना, मानसिक काउंसलिंग की कमी और सहयोगी वातावरण का अभाव भी इन आत्महत्याओं की बड़ी वजह बन रहे हैं।
सरकारी प्रयास और आंकड़े
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2021 में गृह मंत्रालय ने बनाई थी टास्क फोर्स, जिसका उद्देश्य अर्धसैनिक बलों में आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए उपाय सुझाना था।
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टास्क फोर्स की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 80% आत्महत्याएं छुट्टी से लौटने के बाद होती हैं।
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2011 से 2023 तक 1,532 जवानों ने आत्महत्या की (पूर्व अर्ध सैनिक बल कल्याण संघों के परिसंघ की रिपोर्ट)।
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पिछले पांच वर्षों में 6 CAPF के 46,960 जवानों ने नौकरी छोड़ी, जो इस व्यवस्था से असंतोष का संकेत है।
क्या समाधान है?
इन घटनाओं को केवल संयोग नहीं कहा जा सकता। यह देश की आंतरिक सुरक्षा के एक मजबूत स्तंभ के भीतर गहरे संकट की ओर इशारा करता है।
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जवानों की मानसिक काउंसलिंग को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
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छुट्टी प्रणाली को लचीला और संवेदनशील बनाना होगा।
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अफसरों और जवानों के बीच खुले संवाद के लिए विशेष तंत्र विकसित करना होगा।
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कैंपों में मनोरंजन और राहत कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
देश की सुरक्षा में लगे इन जवानों की जान की कीमत बहुत बड़ी है। उनका जीवन, उनकी सेवा और उनका बलिदान किसी आंकड़े में सीमित नहीं होना चाहिए।