कोरबा के ग्रामीणों की पुकार: उड़ती राख से राहत और मुआवजे की दरकार


 

कोरबा (छत्तीसगढ़), 22 मई 2025
कोरबा जिले के छुरीकला और आसपास के गांवों में CSEB (छत्तीसगढ़ स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड) के राखड़ बांध से उड़ती राख ग्रामीणों के लिए अभिशाप बन गई है। बुधवार देर शाम आई तेज आंधी और तूफान ने स्थिति और भी गंभीर बना दी, जिससे राख चारों ओर फैल गई और गांव धूल के गुबार में तब्दील हो गए।

राख ने बदल दी ज़िंदगी

स्थानीय निवासी अशोक कुमार ने बताया कि जब राख उड़ती है, तो घरों का माहौल गैस चैंबर जैसा हो जाता है। "खाना बनाना मुश्किल हो जाता है। कई बार तो हमें सुबह का बना खाना ही बार-बार गर्म करके खाना पड़ता है, क्योंकि ताजे भोजन में राख गिरने का डर बना रहता है," उन्होंने बताया।

गांव की महिला कुसुम बाई ने बताया कि "राख इस तरह से फैलती है कि घर के हर कोने में चादर की तरह जम जाती है। सफाई करना बेहद कठिन हो गया है। बार-बार झाड़ू लगाने पर भी आराम नहीं मिलता।"

एक अन्य ग्रामीण महिला प्रीति बाई ने कहा कि राख ने उनकी पूरी दिनचर्या बिगाड़ दी है। "हमारे छोटे-छोटे बच्चे बीमार पड़ रहे हैं। सांस लेने में तकलीफ होती है। विवाह जैसे आयोजनों में भी अब लोग हिचकने लगे हैं, क्योंकि खुले वातावरण में कुछ भी कर पाना संभव नहीं है।"

बीमारी और चिंता का माहौल

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि लगातार राख की चपेट में आने से बच्चों और बुजुर्गों को सांस संबंधी बीमारियाँ हो रही हैं। कई लोग आंखों में जलन, खांसी, और त्वचा की समस्याओं से परेशान हैं। स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है, पर स्थायी समाधान अभी तक नहीं मिला है।

वादों पर नहीं हुआ अमल

ग्रामीणों का कहना है कि CSEB प्रबंधन ने उन्हें पहले राख नियंत्रण के उपाय करने और प्रभावित परिवारों को क्षतिपूर्ति देने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक इन वादों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। "प्रबंधन सिर्फ आश्वासन देता है, लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं होता," अशोक कुमार ने नाराजगी जताई।

प्रदूषण नियंत्रण की मांग

गांव के लोगों ने CSEB से तत्काल राख उड़ने पर रोक लगाने और स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के लिए मुआवजा देने की मांग की है। साथ ही उन्होंने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी इस मामले में संज्ञान लेकर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है।

प्रशासन की चुप्पी

इस गंभीर समस्या पर अभी तक स्थानीय प्रशासन या CSEB की ओर से कोई ठोस बयान नहीं आया है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे सामूहिक रूप से आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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