रायपुर। आजादी के बाद पहली बार देश में जाति आधारित जनगणना होने जा रही है। केंद्र सरकार ने 2027 में प्रस्तावित जनगणना की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ में अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार पिंगुआ को जनगणना गतिविधियों के समन्वय के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। सामान्य प्रशासन विभाग की उप सचिव अंशिका ऋषि पांडे ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। जनगणना अधिनियम 1948 की धारा 3 के तहत यह कार्य किया जाएगा।
यह जनगणना दो चरणों में की जाएगी। पहले चरण में हाउस लिस्टिंग ऑपरेशन के तहत मकानों की गिनती और उनमें उपलब्ध सुविधाओं का आंकलन किया जाएगा। दूसरे चरण में व्यक्ति आधारित गणना होगी, जिसमें जाति सहित अन्य सामाजिक-आर्थिक सूचनाएं शामिल होंगी। जनगणना जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी, जबकि शेष देश में 1 फरवरी 2027 से यह कार्य प्रारंभ होगा।
16 साल बाद होगी जनगणना, 8वीं स्वतंत्रता के बाद
यह जनगणना भारत की 16वीं और स्वतंत्रता के बाद 8वीं जनगणना होगी। उल्लेखनीय है कि देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना टाल दी गई थी। अब यह 16 साल बाद आयोजित की जा रही है।
भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण ने जानकारी दी है कि 1 अप्रैल 2026 से मकानों की सूची तैयार करने, पर्यवेक्षकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण और क्षेत्रवार कार्य विभाजन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
इसके लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश जारी किए हैं कि 31 दिसंबर 2025 तक वे अपने राजस्व गांव, तहसील, नगर निगम, जिले या अन्य प्रशासनिक सीमाओं में कोई बदलाव न करें, ताकि जनगणना प्रक्रिया प्रभावित न हो।
छत्तीसगढ़ में लीक रिपोर्ट से जातीय जनसंख्या का अनुमान
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान जातिगत आधार पर जनसंख्या का आकलन करने के लिए क्वांटीफायेबल डाटा आयोग का गठन किया गया था। हालांकि यह रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई, लेकिन इसका एक हिस्सा सोशल मीडिया पर लीक हो गया, जिसने राज्य में जातिगत जनसंख्या का व्यापक खुलासा किया।
इस लीक रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ की कुल अनुमानित जनसंख्या 1 करोड़ 25 लाख 7 हजार 169 है। इनमें से सबसे बड़ी आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की है, जिसमें कुल 95 जातियां शामिल हैं।
साहू समाज सबसे बड़ी जाति
रिपोर्ट के मुताबिक, साहू समाज की जनसंख्या सबसे अधिक 30 लाख 5 हजार 661 है। इसके बाद यादव समाज का स्थान है, जिसकी संख्या 22 लाख 67 हजार 500 बताई गई है। निषाद समाज 11 लाख 91 हजार 818 लोगों के साथ तीसरे स्थान पर है।
यह रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि राज्य में ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) की जनसंख्या का हिस्सा बहुत बड़ा है। यह तथ्य आगामी जाति जनगणना के लिए नीति निर्धारण और आरक्षण व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भूपेश बघेल सरकार ने कराई थी पहल
इस रिपोर्ट का आधार 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा गठित क्वांटीफायेबल डाटा आयोग की सर्वेक्षण प्रक्रिया है। 11 सितंबर 2019 को सामान्य प्रशासन विभाग ने आयोग गठन का आदेश जारी किया था। बिलासपुर के पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश छविलाल पटेल को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
आयोग का उद्देश्य था – राज्य में अन्य पिछड़ा वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति का व्यापक सर्वेक्षण कर डाटा तैयार करना। आयोग ने सर्वेक्षण ऐप के जरिए डेटा एकत्र किया।
आयोग का कार्यकाल 10 बार बढ़ा
रिपोर्ट की अनिवार्यता और गहन सर्वेक्षण कार्य को देखते हुए आयोग का कार्यकाल 10 बार बढ़ाया गया। अंतिम रूप से 31 दिसंबर 2022 तक दो महीने के लिए कार्यकाल बढ़ाकर आयोग ने 21 नवंबर 2022 को राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस प्रक्रिया में कुल 1 करोड़ 7 लाख 6 हजार 856 रुपए की लागत आई।
इस रिपोर्ट को लेकर तब की विपक्षी पार्टी भाजपा ने कई सवाल भी उठाए थे, लेकिन कांग्रेस सरकार इसे सामाजिक न्याय और नीति-निर्माण के लिए जरूरी कदम मानती रही।
आने वाली जनगणना पर टिकी हैं नजरें
अब जब केंद्र सरकार ने जाति जनगणना की औपचारिक घोषणा कर दी है, तो यह देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को नई दिशा दे सकती है। नीति नियोजन, आरक्षण, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में जनसंख्या के वास्तविक आंकड़ों के आधार पर योजनाएं बनाना अधिक सटीक और प्रभावी हो सकेगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह जनगणना सामाजिक समरसता के साथ-साथ हाशिए पर खड़े वर्गों की भागीदारी को सुनिश्चित करने का आधार बन सकती है। छत्तीसगढ़ में पहले से उपलब्ध जातिगत डाटा इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मार्गदर्शक साबित हो सकता है।