मिशन हॉस्पिटल लीज विवाद: बिलासपुर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, प्रशासन की कार्रवाई को बताया जायज


 

बिलासपुर – छत्तीसगढ़ के चर्चित मिशन हॉस्पिटल लीज विवाद में बिलासपुर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता की रिट याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की एकल पीठ ने प्रशासन द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण और निर्माण ढहाने की कार्रवाई को कानूनी और वैध ठहराया है।

मामला 14 एकड़ शासकीय भूमि से जुड़ा है, जो 1925 में ‘डिसाइपल्स ऑफ क्राइस्ट’ नामक संस्था को लीज पर दी गई थी। लीज की अवधि 1994 में समाप्त हो गई थी, जिसके बाद तकनीकी कारणों से नवीनीकरण नहीं हो सका। इसके बावजूद संस्था भूमि पर बनी अस्पताल, नर्सिंग स्कूल, स्टाफ क्वार्टर और चर्च का संचालन करती रही।

प्रशासन ने लीज नवीनीकरण किया खारिज

प्रशासन ने लीज नवीनीकरण के आवेदन को खारिज करते हुए भूमि पर अवैध कब्जा मानते हुए कार्रवाई शुरू की। संभागीय आयुक्त ने भी संस्था की अपील को खारिज कर दिया। इस बीच 6 नवंबर 2024 को हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दिए गए अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का आदेश दिया था।

इसके बाद 8 जनवरी 2025 को जिला प्रशासन ने अस्पताल परिसर के लगभग 80% हिस्से को ध्वस्त कर दिया। याचिकाकर्ता ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और पुनर्निर्माण, मुआवजा और लीज नवीनीकरण की मांग की।

याचिकाकर्ता का आरोप: "स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए की गई जबरन कार्रवाई"

संस्था का दावा था कि उन्हें लीज डीड की धारा 8 के अनुसार 30 वर्षों के लिए स्वतः नवीनीकरण का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए जानबूझकर जबरन भूमि खाली कराई गई। याचिका में कहा गया कि प्रशासन ने किराया लेने से इनकार किया और बाद में किराया न देने का आधार बनाकर कब्जा समाप्त कर दिया।

कोर्ट का जवाब: "दस्तावेजों और कानूनों का विवेकपूर्ण परीक्षण हुआ"

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कलेक्टर, संभागीय आयुक्त और राज्य सरकार द्वारा पारित आदेश किसी भी प्रकार की मनमानी, प्रक्रियात्मक त्रुटि या दुर्भावना से ग्रसित नहीं हैं। उन्होंने सभी दस्तावेजों, तथ्यों और कानूनी प्रावधानों का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया है।

“पट्टे का हुआ घोर दुरुपयोग”

न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि संस्था पिछले दो दशकों से लीज की शर्तों का अनुपालन नहीं कर रही थी और भूमि का दुरुपयोग कर रही थी। इसके चलते उन्हें कोई राहत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता कोई वैध या मौलिक अधिकार स्थापित नहीं कर सके हैं, जिससे उनके पक्ष में किसी असाधारण हस्तक्षेप की जरूरत नहीं बनती।

अंतिम निष्कर्ष: रिट याचिका निराधार, खारिज

अंत में, कोर्ट ने अपने निर्णय में उल्लेख किया कि इस रिट याचिका में कोई दम नहीं है और यह असाधारण न्यायिक क्षेत्राधिकार के प्रयोग की मांग नहीं करती। अतः इसे खारिज किया जाता है।

यह फैसला राज्य सरकार के लिए एक बड़ी कानूनी जीत मानी जा रही है, वहीं मिशन हॉस्पिटल प्रबंधन के लिए झटका है, जिसे अब न सिर्फ जमीन से हाथ धोना पड़ा है, बल्कि पुनर्निर्माण और मुआवजे की उम्मीदें भी खत्म हो गई हैं।

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