रायपुर : छत्तीसगढ़ के सुरगुजा जिले के जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के लिए 1742.60 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन को स्वीकृति देने की सिफारिश ने एक बार फिर से पर्यावरणीय बहस छेड़ दी है। राजस्थान सरकार की विद्युत कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) को ‘केंटे एक्सटेंशन कोल ब्लॉक’ के लिए यह भूमि आवंटित की गई है। यह सिफारिश 26 जून 2025 को सुरगुजा वन मंडल के डीएफओ द्वारा साइट निरीक्षण के बाद की गई।
इस परियोजना के चलते अनुमानित 4.48 लाख से अधिक पेड़ों की कटाई की बात सामने आई है। वहीं कांग्रेस, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे हसदेव अरण्य की जैविक और सांस्कृतिक विरासत के लिए गंभीर खतरा बताया है।
विरोध में कांग्रेस और सामाजिक संगठन
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस फैसले की तीखी आलोचना की और कहा कि वर्तमान बीजेपी सरकार हसदेव के जंगलों को अडानी समूह को सौंप रही है। उन्होंने कहा कि “हमारी सरकार ने इस परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी देने से इनकार किया था, लेकिन अब भाजपा सरकार ने इसे हरी झंडी दे दी है।”
उन्होंने दावा किया कि इस क्षेत्र में लगभग 6 लाख पेड़ों की कटाई हो सकती है क्योंकि 99% क्षेत्र घने वन से आच्छादित है। उन्होंने यह भी कहा कि राजस्थान की कोयले की आवश्यकता को पहले से संचालित पीईकेबी (Parsa East Kente Basan) खदान से अगले 15 वर्षों तक पूरा किया जा सकता है, ऐसे में नई खदान की आवश्यकता ही नहीं है।
पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने भी इसे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत पर हमला बताया और कहा कि “रामगढ़ पहाड़ी, जो इस क्षेत्र के पास है, एक धार्मिक और पुरातात्विक महत्व का स्थल है। इसे किसी भी हाल में पूंजीपतियों के फायदे के लिए नष्ट नहीं होने दिया जाएगा।”
पर्यावरणीय चिंता और जन आक्रोश
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि यह क्षेत्र चोरनई नदी के कैचमेंट क्षेत्र में आता है और लेमरू हाथी रिजर्व से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है। उन्होंने बताया कि “यह परियोजना केवल पर्यावरण ही नहीं, बल्कि जैव विविधता, जल स्रोतों और आदिवासी समुदायों के अस्तित्व पर भी हमला है।”
उनका कहना है कि भाजपा सरकार पहले कांग्रेस सरकार पर पेड़ों की कटाई का आरोप लगाती रही, लेकिन अब खुद वही कार्य कर रही है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि “यह परियोजना असल में अडानी ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए लाई गई है। RRVUNL ने अडानी को इस खदान का MDO (माइन डेवलपर-कम-ऑपरेटर) नियुक्त किया है।” उनका यह भी दावा है कि केंद्र सरकार ने कांग्रेस सरकार के विरोध के बावजूद भूमि अधिग्रहण जारी रखा ताकि परियोजना को आगे बढ़ाया जा सके।
उन्होंने कहा, “हमने विधानसभा में हसदेव में वनों की कटाई रोकने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करवाया था, लेकिन अब सरकार अपने ही वादों से मुकर रही है।”