नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां पहली बार एक अत्यंत दुर्लभ माने जाने वाले सेरिब्रोस्पाइनल फ्लुइड-वेनस फिस्टुला (CSF-Venous Fistula) का सफलतापूर्वक इलाज किया गया है। डॉक्टरों ने न्यूनतम इनवेसिव इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजी तकनीक का उपयोग करते हुए इस जटिल बीमारी का समाधान किया, जिससे मरीज की जान बच सकी और उसकी तकलीफें दूर हो गईं।
38 वर्षीय महिला मरीज पिछले दो महीनों से लगातार सिरदर्द और कानों में अजीब आवाजें सुनने जैसी परेशानियों से जूझ रही थी। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई थी कि वह रोजमर्रा के सामान्य कार्य जैसे खाना खाना, नहाना, या चलना-फिरना तक नहीं कर पा रही थी। कई जगह इलाज कराने के बाद भी उसे राहत नहीं मिली, तब उसने एम्स का रुख किया।
एम्स में उसकी विस्तृत न्यूरोइमेजिंग जांच की गई। जांच में सामने आया कि वह स्पॉन्टेनियस इंट्राक्रेनियल हाइपोटेंशन (SIH) नामक स्थिति से पीड़ित है, जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारों ओर मौजूद सेरिब्रोस्पाइनल फ्लुइड (CSF) का रिसाव हो जाता है। इसी कारण महिला को सिरदर्द, चक्कर और श्रवण संबंधी समस्याएं हो रही थीं।
आगे की पुष्टि के लिए उसका लेटरल डिक्यूबिटस डिजिटल सब्ट्रैक्शन मायलोग्राफी (DSM) टेस्ट किया गया। इस जांच से पता चला कि उसके रीढ़ के एल-1 कशेरूका स्तर पर एक दुर्लभ सीएसएफ-वेनस फिस्टुला है, जिसमें मस्तिष्कमेरु द्रव सीधे नसों में जा रहा था। यह एक अत्यंत दुर्लभ स्थिति है, जिसे हाल ही में मेडिकल साइंस में पहचाना गया है।
इस चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन का नेतृत्व इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजिस्ट डॉ. निहार विजय काठरानी ने किया। उन्होंने बताया कि टीम ने बिना किसी सर्जिकल टांके के, फेमोरल वेन यानी पैर की जांघ की नस से एंडोवेस्कुलर तकनीक का इस्तेमाल कर इस फिस्टुला को पूरी तरह बंद कर दिया। यह एक बेहद सटीक और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें मरीज की पीठ में कोई चीरा तक नहीं लगाया गया।
ऑपरेशन के बाद महिला की स्थिति में तुरंत सुधार देखने को मिला। उसका सिरदर्द, चक्कर आना और कानों में आवाज सुनाई देना पूरी तरह बंद हो गया। फॉलो-अप एमआरआई में यह पुष्टि हुई कि अब मस्तिष्क का दबाव सामान्य हो चुका है और रिसाव पूरी तरह बंद हो गया है। महिला को पूरी तरह ठीक होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रमुख डॉ. एनके बोधे ने बताया कि सीएसएफ-वेनस फिस्टुला एक बहुत ही दुर्लभ स्थिति है और अब तक भारत में इसके केवल पांच से भी कम मामलों का इलाज हुआ है। यह एम्स या देश के किसी भी अन्य इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इंपोर्टेंस (INI) में पहली बार किया गया सफल ऑपरेशन है।
इस अभूतपूर्व सफलता में डॉ. ऋचा सिंह चौहान, डॉ. अनिल शर्मा, डॉ. सुखरिया सरवनन, डॉ. सुभ्रत सिंघा, डॉ. वंकडवथ लावण्या, डॉ. अनन्या राव, डॉ. हाशिल, डॉ. सरोज कुमार पाटी, डॉ. मनीष कुमार, रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. अमीन अंसारी, डॉ. क्रोहित यादव, डॉ. वीरेंद्र कुमार, डॉ. नियनता शर्मा जैसे विशेषज्ञों की अहम भूमिका रही।
यह चिकित्सा की दुनिया में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह उपलब्धि न सिर्फ एम्स के चिकित्सकों की तकनीकी दक्षता को दर्शाती है, बल्कि देश के चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों और उन्नति की मिसाल भी है। ऐसे दुर्लभ मामलों में सफल इलाज की यह कहानी कई मरीजों और चिकित्सकों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी।